Home विविधासाहित्य कविता: हुस्न की आरजू में खड़े हैं

कविता: हुस्न की आरजू में खड़े हैं

by zadmin

अशोक ‘अंजुम

हुस्न की आरजू में खड़े हैं 
जानेमन हम भी क्यू में खड़े हैं 

प्यार तेरा है वातानुकूलित 
हम क्यूं वर्षों से लू में खड़े हैं ?

पीछे वाले तो पहुंचे शिखर पे 
हम तो कब से ‘शुरू’ में खड़े हैं

इस कदर घर में किच-किच है यारों 
है भरम जैसे- ‘जू’ में खड़े हैं 

दीखते हैं जो सत्ता में ‘अंजुम’
भीगकर क्यूं लहू में खड़े हैं?

You may also like

Leave a Comment