अंधविश्वास के कारण कम हो रही है गधों की आबादी
विशेष संवाददाता
नई दिल्ली,27 फ़रवरी: रास्तों पर आसानी से नजर आने वाला गधा अब विलुप्त होने की कगार पर है. उसे देश में विलुप्त हो रहे जानवरों की सूची में शामिल किया गया है. दरअसल, इस शांत और मासूम जानवर की कम हो रही संख्या के पीछे कारण इन्हें मारना बताया जा रहा है. कुछ रिपोर्ट्स बताती हैं कि लोग मानते हैं कि गधे का मांस खाने से उन्हें स्वास्थ्य में लाभ होगा. जबकि, फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के अनुसार, गधों को खाने के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. साथ ही इन्हें मारना अवैध है. आंध्र प्रदेश में इस मामले को लेकर जांच जारी है.
आंध्र प्रदेश में गधे के मांस के इस्तेमाल को लेकर जांच की जा रही है. कुछ लोग इस मिथक को मान रहे हैं कि गधे के मांस से कमरदर्द और अस्थमा में आराम मिलेगा. पशुओं के लिए काम करने वाले गोपाल आर सुरबथुला ने बताया ‘गधे का मांस सबसे ज्यादा प्रकासम, कृष्णा, पश्चिमी गोदावरी और गुंटूर जिले में किया जा रहा है.’ उन्होंने बताया कि हर गुरुवार और रविवार को मांस की सेल होती है, जहां शिक्षित भी इन्हें खरीदते देखे जा सकते हैं. माना जा रहा है कि ऐसे मौकों पर कम से कम 100 गधों को मार दिया जाता है.
उन्होंने यह जानकारी दी है कि इस कारोबार में शामिल लोग गधों को कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र से मंगा रहे हैं. वहीं, इस अवैध कारोबार को लेकर कई पशु प्रेमियों ने मामला दर्ज करा दिया है. साथ ही गधों को लेकर दूसरे राज्यों से हो रहे ट्रांसपोर्टेशन पर भी जांच गहन हो गई है. सुरबथुला ने जानकारी दी है कि गधे का मांस 600 रुपए प्रति किलो की दर से बेचा जा रहा है.