मानव जीवन जब तक राम जीवित हैं मानवता जीवित रहेगी- डॉ. दीनानाथ पाटील
कल्याण @nirbhaypathik:-श्रीकेश चौबे:-अखिल भारतीय साहित्य परिषद न्याय, दिल्ली एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग, हिंदी संस्कृत केंद्र, वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय, सूरत गुजरात द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह 16 और 17 फरवरी 2024 को आयोजित किया गया था। उक्त कार्यक्रम के लिए परिषद द्वारा ‘लोकजीवन में राम’ यह विषय तय किया गया था। इस सेमिनार में पूरे भारत से कुल 15 वक्ता लेखकों को आमंत्रित किया गया था। इस संगोष्टी में भारतीय सैनिकी विद्यालय व कनिष्ट महाविद्यालय, खडवली, कल्याण, जिला. ठाणे के सहायक अध्यापक डॉ. दीनानाथ मुरलीधर पाटील ने कहा कि राम तत्त्व आज भी लोगों के मन में बरकरार है और इसे जीवित रखना समाज के सभी वर्गों की जिम्मेदारी है। एक सम्पूर्ण व्यावहारिक जीवन दर्शन को समेटे हुए राम के चरित्र पर जितनी भी चर्चा, आलोचना-समालोचना और समीक्षा हुई है उतनी शायद ही किसी अन्य लिपि बद्ध ग्रंथ की हुई होगी, राम का व्यक्तित्व गरिमामय और चारित्रिक है, जो बिना किसी अभिव्यक्ति के भी भारत के जनमानस के मन में इतनी गहराई तक बसा हुआ है कि राम के उल्लेख मात्र से ही व्यक्ति रोमांचित और प्रसन्न हो जाता है और राम राज्य की कामना करता है। राम वह व्यक्तित्व हैं जिनके नाम पर भारत ही नहीं बल्कि पूरा विश्व और पूरी सृष्टि एकमत हो सकती है।
‘राम’ जब सार्वजनिक जीवन में आते हैं तो जीवन का हिस्सा बन जाते हैं। राम मानव जीवन के विभिन्न संस्कारों और जीवन की विभिन्न स्थितियों में विद्यमान हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक मुहावरों, कहावतों, रीति-रिवाजों, विभिन्न संस्कारों में राम व्याप्त हैं। जब तक मानव जीवन में राम जीवित हैं, तब तक मानवता जीवित रहेगी।
श्रीरामचरितमानस मानव जीवन का ग्रंथ है। इस पुस्तक को लिखते समय गोस्वामी तुलसीदासजी ने कई ऐसी घटनाओं का वर्णन किया है, जो हमारे दैनिक जीवन में आने वाली समस्याओं के समाधान के लिए उदाहरण और प्रेरणा का काम करती हैं।
इस कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. किशोर सिंह चावड़ा, कुलपति, वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय, सूरत, प्रमुख पाहुणे परम पूज्य स्वामी निजानंद जी, ब्रह्मचारी आश्रम, गोतरका, मा. श्रीधर जी पराड़कर, प्रसिद्ध लेखक एवं विचारक, ऋषि मिश्र, राष्ट्रीय संगठन मंत्री, अखिल भारतीय साहित्य परिषद एवं डॉ. भरत जी ठाकोर, समन्वयक, तुलनात्मक साहित्य विभाग, डॉ. रमेश दान गढ़वी, कुलसचिव, वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय, सूरत आदि गणमान्य लोग उपस्थित थे।