भइया लो फिर से हुए, पप्पू सखा बहाल
पाकर जैसे खजाना,नाच रहे कंगाल
नाच रहे कंगाल,दाल में है कुछ काला
आखिर चमचे इतने खुश क्यों दीखें लाला
कह सुरेश कविराय गजब है पप्पू दइया
एक सांसदी पर यूं नाचें ता ता थइया
सुरेश मिश्र
भइया लो फिर से हुए, पप्पू सखा बहाल
पाकर जैसे खजाना,नाच रहे कंगाल
नाच रहे कंगाल,दाल में है कुछ काला
आखिर चमचे इतने खुश क्यों दीखें लाला
कह सुरेश कविराय गजब है पप्पू दइया
एक सांसदी पर यूं नाचें ता ता थइया
सुरेश मिश्र