इस वर्ष चार नहीं पांच महीने तक नहीं बजेंगी शहनाईयां
ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री
चातुर्मास का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार चातुर्मास आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से शुरू होकर कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि तक रहता है। साल 2023 में चातुर्मास 29 जून से शुरू होगा, इस दिन देवशयनी एकादशी भी है। 23 नवंबर 2023 को देवोत्थानी एकादशी है। कहा जाता है कि इस दिन से भगवान विष्णु विश्राम काल पूरा करने के बाद क्षीर सागर से निकल कर सृष्टि का संचालन करते हैं। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी या हरिशयनी एकादशी कहते हैं। इस साल देवशयनी एकादशी 29 जून 2023 को है। इस दिन श्रीहरि विष्णु की पूजा करने से कई गुना अधिक फल की प्राप्ति होती है। ज्योतिषाचार्य अतुल शास्त्री ने बताया कि पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का शुभारंभ 29 जून 2023 सुबह 03:18 मिनट पर होगा और इस तिथि का समापन 30 जून सुबह 02:42 मिनट पर हो जाएगा. पूजा तिथि के अनुसार, देवशयनी एकादशी व्रत गुरुवार 29 जून 2023 को रखा जाएगा. इस विशेष दिन पर रवि योग का निर्माण हो रहा है, जो सुबह 05:26 मिनट से दोपहर 04:30 मिनट तक रहेगा।देवशयनी एकादशी के दिन से ही जगत के पालनहार भगवान विष्णु का निद्राकाल शुरू हो जाता है, यानी इसी दिन से चातुर्मास की शुरुआत होती है। चातुर्मास शुरू होने के बाद से सारे शुभ और मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है।ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल ने बताया कि देवशयनी एकादशी से चातुर्मास का प्रारंभ होता है।देवशयनी एकादशी से चार माह तक भगवान विष्णु देवोत्थानी एकादशी तक के लिए योग निद्रा में चले जाएंगे। फिर वे देवउठनी एकादशी को योग निद्रा से बाहर आएंगे, तब चातुर्मास का समापन होगा। देवउठनी एकादशी 23 नवंबर को है। इस तरह से चातुर्मास 30 जून से लगेगा और 23 नवंबर को खत्म हो जाएगा. इस बार श्रावण पुरुषोत्तम मास होने की वजह से दो माह तक है, इसलिए चातुर्मास की अवधि पांच माह होग। इस दौरान सभी मांगलिक कार्य बंद रहेंगे। हिंदू धर्म में चातुर्मास का बहुत अधिक महत्व माना जाता है। चातुर्मास की शुरुआत आषाढ़ माह से शुरू होती है और कार्तिक की एकादशी के दिन खत्म होते हैं।ज्योतिषाचार्य ने बताया कि चार माह की निद्रा के बाद कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को जब भगवान विष्णु योग निद्रा से उठते हैं तब फिर से सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं. इस बार चातुर्मास चार माह की बजाय पांच माह तक रहेंगे। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा के अलावा कुछ उपाय करने से जीवन में खुशियां आती हैं।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवशयनी एकादशी से देवोत्थानी एकादशी तक भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग पर विश्राम करते हैं. इन पांच महीनों में सभी मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है। इस दौरान मुंडन, उपनयन संस्कार, विवाह इत्यादि जैसे महत्वपूर्ण मांगलिक कार्य रोक दिए जाते हैं. मान्यता है कि भगवान विष्णु के शयनकाल में मांगलिक कार्य करने से व्यक्ति को उनका आशीर्वाद नहीं प्राप्त होता है, जिस वजह से विघ्न उत्पन्न होने का खतरा बना रहता है. हर साल चातुर्मास सामान्य रूप से 4 महीने का होता है, लेकिन इस साल अधिक मास होने के कारण चातुर्मास 5 महीने का होगा। यानी कि इस दिन भगवान विष्णु पूरे 5 महीने के लिए योग निद्रा में चले जाएंगे और फिर इसके बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानी कि देवउठनी एकादशी के दिन योग निद्रा से जागेंगे। ज्योतिषाचार्य अतुल शास्त्री ने बताया कि देवशयनी एकादशी का विशेष महत्व होते हैं। देवशयनी एकादशी भगवान विष्णु के आराम का समय है, यानी एक दिन से भगवान विष्णु चार महीने के लिए शयन करने के लिए चले जाते हैं। इसी के साथ इस दिन से चातुर्मास का आरंभ भी हो जाता है. ऐसे में अगले 4 महीने तक कोई भी शुभ कार्य का आयोजन करना वर्जित माना जाता है. हर साल चातुर्मास सामान्य रूप से 4 महीने का होता है, लेकिन इस साल अधिक मास होने के कारण चातुर्मास 5 महीने का होगा, यानी कि इस दिन भगवान विष्णु पूरे 5 महीने के लिए योग निद्रा में चले जाएंगा और फिर इसके बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानी कि देवउठनी एकादशी के दिन योग निद्रा से जागेंगे। ज्योतिषाचार्य ने बताया कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु के विश्राम करने से सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। इस दौरान सभी तरह के धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, बस विवाह समेत अन्य मांगलिक कार्य नहीं होते हैं। इस दौरान भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करना चाहिए। ज्योतिषाचार्य अतुल शास्त्री ने बताया कि इस साल 29 जून को देवशयनी एकादशी और 23 नवंबर को देव उठनी एकादशी रहेगी, इसलिए चातुर्मास 148 दिनों का रहेगा। इन दिनों में भगवान विष्णु योग निद्रा में रहेंगे। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस अवधि में सृष्टि को संभालने और कामकाज संचालन का जिम्मा भगवान भोलेनाथ के पास रहेगा। इस दौरान धार्मिक अनुष्ठान किए जा सकेंगे पर विवाह समेत मांगलिक काम नहीं होंगे। ज्योतिषाचार्य अतुल शास्त्री ने बताया कि भगवान विष्णु को सृष्टि का पालनहार कहा जाता है। श्रीहरि के विश्राम अवस्था में चले जाने के बाद मांगलिक कार्य जैसे- विवाह, मुंडन, जनेऊ आदि करना शुभ नहीं माना जाता है। मान्यता है कि इस दौरान मांगलिक कार्य करने से भगवान का आशीर्वाद नहीं प्राप्त होता है। शुभ कार्यों में देवी-देवताओं का आवाह्न किया जाता है। भगवान विष्णु योग निद्रा में होते हैं, इसलिए वह मांगलिक कार्यों में उपस्थित नहीं हो पाते हैं। जिसके कारण इन महीनों में मांगलिक कार्यों पर रोक होती है। ज्योतिषाचार्य अतुल शास्त्री ने बताया कि ग्रंथों के अनुसार पाताल लोक के अधिपति राजा बलि ने भगवान विष्णु से पाताल स्थिति अपने महल में रहने का वरदान मांगा था, इसलिए माना जाता है कि देवशयनी एकादशी से अगले 4 महीने तक भगवान विष्णु पाताल में राजा बलि के महल में निवास करते हैं। इसके अलावा अन्य मान्यताओं के अनुसार शिवजी महाशिवरात्रि तक और ब्रह्मा जी शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक पाताल में निवास करते हैं। ज्योतिषाचार्य ने बताया कि चार्तुमास में संत एक ही स्थान पर रुककर तप और ध्यान करते हैं। चातुर्मास में यात्रा करने से यह बचते हैं, क्योंकि ये वर्षा ऋतु का समय रहता है, इस दौरान नदी-नाले उफान पर होते है तथा कई छोटे-छोटे कीट उत्पन्न होते हैं। इस समय में विहार करने से इन छोटे-छोटे कीटों को नुकसान होने की संभावना रहती है. इसी वजह से जैन धर्म में चातुर्मास में संत एक जगह रुककर तप करते हैं।चातुर्मास में भगवान विष्णु विश्राम करते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। देवउठनी एकादशी के बाद विष्णुजी फिर से सृष्टि का भार संभाल लेते हैं।ज्योतिषाचार्य अतुल शास्त्री ने बताया कि चातुर्मास में पूजा और ध्यान करने का विशेष महत्व है। देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधनी एकादशी तक भगवान विष्णु विश्राम करेंगे। इस दौरान शिवजी सृष्टि का संचालन करेंगे. इन दिनों में शिवजी और विष्णुजी की पूजा करनी चाहिए। चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु और शिवजी का अभिषेक करना चाहिए. विष्णुजी को तुलसी तो शिवजी को बिल्वपत्र चढ़ाने चाहिए। साथ ही ऊँ विष्णवे नम: और ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करना चाहिए। इन दिनों में भागवत कथा सुनने का विशेष महत्व है. साथ ही जरूरतमंद लोगों को धन और अनाज का दान करना चाहिए। ज्योतिषाचार्य अतुल शास्त्री ने बताया कि चातुर्मास की शुरुआत में बारिश का मौसम रहता है। इस कारण बादलों की वजह से सूर्य की रोशनी हम तक नहीं पहुंच पाती है। सूर्य की रोशनी के बिना हमारी पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। ऐसी स्थिति में खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। खाने में ऐसी चीजें शामिल करें जो सुपाच्य हों वरना पेट संबंधित बीमारियां हो सकती है। ज्योतिषाचार्य अतुल शास्त्री ने बताया कि सावन से लेकर कार्तिक तक चलने वाले चातुर्मास में नियम-संयम से रहने का विधान बताया गया है। इन दिनों में सुबह जल्दी उठकर योग, ध्यान और प्राणायाम किया जाता है। तामसिक भोजन नहीं करते और दिन में नहीं सोना चाहिए. इन चार महीनों में रामायण, गीता और भागवत पुराण जैसे धार्मिक ग्रंथ पढ़ने चाहिए। भगवान शिव और विष्णुजी का अभिषेक करना चाहिए। पितरों के लिए श्राद्ध और देवी की उपासना करनी चाहिए, जरूरतमंद लोगों की सेवा करें।
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