नई दिल्ली,(@nirbhaypathik): हिन्दी माध्यम से संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में उत्तीर्ण होने वालों की संख्या में पिछले वर्ष की तुलना में दोगुनी से भी कहीं ज़्यादा बढ़ोतरी, एक बेहद सुखद एहसास है। 2023 में प्रकाशित संघ लोक सेवा आयोग के परीक्षाफल में हिंदी माध्यम के 54 प्रत्याशियों की सफलता एक नया कीर्तिमान बन गया है।
यह संघ लोक सेवा आयोग के इतिहास में हिंदी माध्यम का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा है। इस बार 66वीं, 85वीं , 89वीं 105 वीं और 125 वीं रैंक लाकर हिन्दी भाषी उम्मीदवारों ने जिस शानदार सफलता का प्रदर्शन किया है वह निःसंदेह अभूतपूर्व है ।
इन नतीजों में सबसे खास बात यह है कि 54 उम्मीदवारों में से 29 ने वैकल्पिक विषय के रूप में हिंदी भाषा और साहित्य लेकर यह कामयाबी हासिल की है। पांच-पांच उम्मीदवार ऐसे भी सफल हुए हैं जिन्होंने इतिहास, भूगोल व राजनीति विज्ञान विषय लिया था।
साहित्य, इतिहास, भूगोल व राजनीति जैसे विषय सीधे -सीधे मानवीय, वैश्विक, राष्ट्रीय और सामाजिक परिदृश्य एवं सरोकारों से संबद्ध हैं। हिन्दी भाषा एवम् साहित्य वैकल्पिक विषय रखकर बड़ी संख्या में उत्तीर्ण होना इस तथ्य को भी रेखांकित करता है और आश्वस्त भी करता है कि संवेदनशील प्रशासकों की कमी के कारण जनता और प्रशासन के बीच जो दूरी निर्मित होती है उसे साहित्यिक संवेदना से परिपूर्ण, अनुभूति की प्रामाणिकता से संपृक्त इन नये प्रशासकों के द्वारा कम किया जा सकेगा। यह सफलता राजभाषा हिन्दी की क्षमता और सार्वजनिक -सरकारी व्यवहार में उसकी उपादेयता को भी पुनर्स्थापित करता है। लोक सेवकों को बहुधा मात्र बुद्धिमत्ता की नहीं अपितु भावप्रवणता, परिपक्वता, सहनशीलता, संवेदनशीलता, दृढ़ता, निष्पक्षता की उससे भी कहीं अधिक आवश्यकता होती है। और साहित्य से अनुस्यूत लोक सेवक इन मानदंडों पर बहुत हद तक खरे उतर सकते हैं, इसमें संदेह नहीं। जनसंवाद प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने हेतु आज के सामासिक किंतु विरोधाभासी घटकों के कारण एक अनिवार्य शर्त बन गई है। इस दिशा में भी हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के माध्यम से आये हुए जनसेवकों से भारतियों से प्रशासन को जनोन्मुख बनाने में सहायता मिलेगी। यहाँ एक बात को अधोरेखित करना आवश्यक जान पड़ता है कि, नागरिक सेवकों से ये अपेक्षित होता है कि जड़ हो गई समस्याओं का अमुलाग्र निराकरण करें, रूढ़ हो गई जटिल पद्धतियों का सरलीकरण करें, अनुपयोगी हो चुके नियमों, अधिनियमों, सरकारी परिपत्रों से निज़ात दिलायें और नित नये उभरते आयामों पर नये प्रभावी सुझावों का प्रणयन करें। और ऐसा समझने, सोचने, शुरुआत करने के लिए अभिजात्य नहीं बल्कि सामान्य अभिरुचियों की परख और पहचान हिन्दी और अन्य स्थानीय भारतीए भाषाओं के माध्यम से बेहतर तरीक़े से हो सकती है।