गर्मी में सूरज तपे, मौसम लहूलुहान
सन्नाटे में खेत हैं, बिहंस रहे खलिहान
बिहंस रहे खलिहान,माथ पर श्रम के मोती
हारें नहीं किसान, समझकर नियति बपौती
कह सुरेश कविराय पस्त लू की हठधर्मी
श्रम बूंदों से हार गई सूरज की गर्मी।
सुरेश मिश्र
गर्मी में सूरज तपे, मौसम लहूलुहान
सन्नाटे में खेत हैं, बिहंस रहे खलिहान
बिहंस रहे खलिहान,माथ पर श्रम के मोती
हारें नहीं किसान, समझकर नियति बपौती
कह सुरेश कविराय पस्त लू की हठधर्मी
श्रम बूंदों से हार गई सूरज की गर्मी।
सुरेश मिश्र