कर्नाटक में रोचक हुआ सत्ता का संग्राम
रमेश सर्राफ धमोरा
कर्नाटक में आगामी दस मई को विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे। चुनाव में जीत हासिल करने के लिए सभी राजनीतिक दल अपनी तैयारियों में जुटे हुए हैं। अगले साल लोकसभा के चुनाव होने हैं। उससे पूर्व कर्नाटक विधानसभा के चुनाव परिणाम देश की राजनीति में महत्वपूर्ण पड़ाव साबित होगें। भाजपा ने सत्ता विरोधी माहौल को समाप्त करने के लिए 52 मौजूदा विधायकों के टिकट काटकर उनके स्थान पर नए चेहरों को मौका दिया है। भाजपा ने पार्टी के संस्थापकों में से एक रहे पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार व पूर्व उपमुख्यमंत्री रहे लक्ष्मण सावदी का भी टिकट काट दिया है।
भाजपा के बड़े नेता रहे के. अंगारा, आर शंकर और एमपी कुमार स्वामी ने भी टिकट नहीं मिलने पर इस्तीफा दे दिया है। जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी ने भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर कांग्रेस के निशान पर चुनाव मैदान में उतर गये हैं। जगदीश शेट्टार 6 बार विधायक, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष, मुख्यमंत्री सहित कई बार मंत्री, विधानसभा अध्यक्ष रह चुके हैं। इतने लंबे राजनीतिक जीवन में उन पर कभी किसी तरह के आरोप नहीं लगे हैं। इसलिए उनकी छवि साफ मानी जाती। बीएस येदुरप्पा के बाद वह लिंगायत समुदाय के दूसरे सबसे बड़े नेता माने जाते हैं।
शेट्टार के भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल होने से जहां भाजपा को नुकसान होना तय माना जा रहा है वही कांग्रेस को भी चुनाव में फायदा मिलेगा। इसीलिए कांग्रेस ने जगदीश शेट्टार व लक्ष्मण सावदी को टिकट देकर चुनाव मैदान में उतार दिया है। भाजपा के सबसे वरिष्ठ नेता बीएस येदुरप्पा व ईश्वरप्पा के इस बार चुनावी मैदान में नहीं होने से पार्टी के पास बड़े चेहरे का भी अभाव है।
कांग्रेस चाहती है कि किसी भी तरह से भाजपा को हरा कर प्रदेश में अपनी सरकार बनाई जाए ताकि पार्टी के गिरते जनाधार को रोका जा सके। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे कर्नाटक में कांग्रेस के बड़े नेता रहे हैं। उनकी सदा से ही मुख्यमंत्री बनने की चाहत रही है जो इस बार सरकार बनने पर पूरी हो सकती है। वैसे भी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद मल्लिकार्जुन खरगे के सामने अपने गृह प्रदेश में सरकार बनाना सबसे बड़ी चुनौती है। इसीलिए कांग्रेस पार्टी चुनाव जीतने के लिए सभी तरह के प्रयास कर रही है।
कर्नाटक में जनता दल सेक्युलर मैसूरू कर्नाटका इलाके में अपना मजबूत जनाधार रखती है। प्रदेश की 100 सीटों पर जनता दल सेक्युलर चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की ताकत रखती है। जनतादल सेक्युलर ने किसी भी राजनीतिक दल से चुनावी समझौता नहीं किया है। उनका मानना है कि चुनाव में पिछले बार की तरह किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा। ऐसे में वह अपने जीते हुए विधायकों के बल पर सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा।
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को एक करोड़ 33 लाख 28 हजार 524 वोट यानी 36.35 प्रतिशत मतों के साथ 104 सीटें मिली थी। वही कांग्रेस को एक करोड़ 39 लाख 86 हजार 526 वोट यानी 38.14 प्रतिशत वोटों के साथ 80 सीटों पर जीत मिली थी। जनता दल सेक्युलर को 67 लाख 26 हजार 667 वोट यानी 18.30 प्रतिशत वोटों के साथ 37 सीटों पर जीत मिली थी। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा से 6 लाख 58 हजार दो वोट यानी 1.70 प्रतिशत अधिक मत लेकर भी भाजपा से 24 सीटों से पिछड़ गई थी। इसका मुख्य कारण था जनता दल सेकुलर का कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाना। पिछले चुनाव में कांग्रेस के पास कर्नाटक के सबसे प्रभावशाली लिंगायत समुदाय का कोई बड़ा नेता भी नहीं था। लेकिन इस बार जगदीश शेट्टार के आने से कांग्रेस को लिंगायत समुदाय के वोट बैंक में सेंध लगाने का एक बड़ा हथियार मिल गया है।
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के पास पर्याप्त बहुमत नहीं था। ऐसे में कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर ने मिलकर जनता दल सेक्युलर के नेता एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व में सरकार का गठन कर लिया था।। मगर 14 महीने बाद ही भाजपा ने कांग्रेस व जनता दल सेक्युलर के विधायकों से इस्तीफे दिलवा कर जोड़-तोड़ से अपनी सरकार बना ली थी। उस समय बीएस येदुरप्पा भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री बने थे। मगर येदुरप्पा की मनमानी व उनके शासनकाल में भ्रष्टाचार को लेकर लगे आरोपों के चलते उन्हें पद छोड़ना पड़ा और जुलाई 2021 में बसवराज बोम्मई को भाजपा ने नया मुख्यमंत्री बनाया था। हालांकि बोम्मई मुख्यमंत्री बन गए मगर सरकार पर पूरा प्रभाव पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येद्दयुरप्पा का ही रहा। 2019 में जोड़-तोड़ कर सरकार बनाने के बाद से ही कर्नाटक भाजपा में लगातार उथल पुथल होती रही है।
चुनाव से पहले कई बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ने से भाजपा मुश्किलों में घिरी नजर आ रही है। वही भाजपा सरकार पर 40 प्रतिशत तक की कमीशन खोरी के आरोप लगाकर कांग्रेस उन्हें लगातार कटघरे में खड़ा करती रही है। पिछले दिनों बेंगलुरु में लोकायुक्त पुलिस ने बीजेपी विधायक मदाल विरुपक्षप्पा के बेटे प्रशांत कुमार को एक ठेकेदार से 40 लाख रूपयों की घूस लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किया था। उसके बाद प्रशांत कुमार के घर से छः करोड़ रूपये भी बरामद किए गए थे। प्रशांत कुमार बेंगलुरु वाटर सप्लाई एंड सीवरेज बोर्ड में चीफ अकाउंटस ऑफीसर थे। उन्हें कर्नाटक सोप एंड डिटर्जेंट लिमिटेड के आफिस से रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया गया था। उनके पिता व भाजपा विधायक मदाल विरुपक्षप्पा कर्नाटक सोप एंड डिटर्जेंट लिमिटेड के चेयरमैन थे। प्रशांत कुमार पर लोकायुक्त पुलिस ने आरोप लगाया था कि वह अपने पिता के स्थान पर रिश्वत की पहली किस्त प्राप्त कर रहे थे।
पिछले साल तुमकुर जिले के एक ठेकेदार ने तब के मंत्री ईश्वरप्पा पर रिश्वत लेने का आरोप लगाकर आत्महत्या कर ली थी। जिसके चलते ईश्वरप्पा को राज्य मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था। हालांकि बाद में जांच कर ईश्वरप्पा को बरी कर दिया गया था। इसी के चलते इस बार ईश्वरप्पा को टिकट से वंचित रखा गया है। कर्नाटक में पौने चार साल के कार्यकाल में भाजपा सरकार लगातार आरोपों से घिरी रही है। जिस कारण आम जनता में भाजपा के प्रति सत्ता विरोधी माहौल व्याप्त हो रहा है। उसी के चलते काफी विधायकों के टिकट भी काटे गए हैं। हालांकि भाजपा गुजरात की तर्ज पर अधिकांश विधायकों के टिकट काटना चाहती थी। मगर बीएस येदुरप्पा के विरोध के चलते ऐसा नहीं कर पाई।
कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में इस बार जहां भाजपा सत्ता विरोधी लहर के चलते बचाव की मुद्रा में है। वहीं कांग्रेस सहित जनता दल सेक्युलर व अन्य विपक्षी दल पूरी तरह सरकार पर हमलावर हो रहे हैं। कांग्रेस में भी पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया व प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार के मध्य गुटबाजी चल रही है। मगर ऊपरी तौर पर सभी कांग्रेसी नेता एकजुट होकर चुनावी मैदान में नजर आ रहे हैं। वर्तमान माहौल में यदि कांग्रेस के सभी नेता एकजुटता से चुनाव लड़ते हैं तो भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकते हैं।
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार है।