वास्तु विधान ने किया 120 साल पुराना ऐतिहासिक पेयजल फव्वारे का पुर्नउद्धार
मुंबई(निर्भय पथिक):शहर की सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए यहां के जीजामाता उद्यान में 120 साल पुराने पीने के पानी के फव्वारे को चालू कर दिया गया है। 1903 में निर्मित, सेठ समलदास नसीदास प्याऊ (जल कियोस्क) वीरमाता जीजाबाई भोसले उद्यान और चिड़ियाघर में स्थित है। शहर में ऐसे कुल 21 फव्वारों को पुनर्जीवित किया जा रहा है। औपनिवेशिक युग में शहर में सार्वजनिक स्थानों पर अलंकृत पीने के पानी के फव्वारे आम थे। बृहन्मुंबई महानगरपालिका विरासत संरक्षण प्रकोष्ठ ने वास्तुशिल्प फर्म वास्तु विधान के साथ इस पेयजल फव्वारे को पुनर्जीवित करने वाली परियोजना की शुरुआत की है। बता दें कि रानी बाग परिसर के भीतर – पहले चरण के तहत चार फव्वारे पुनर्वसित किए गए हैं. इन में तीन झरनों को जल स्टेशनों के रूप में बहाल किया गया था,जबकि सेठ समलदास प्याऊ को एक फव्वारा और एक तालाब के रूप में पुनर्जीवित किया गया है ।
इस बारे में जानकारी देते हुए वास्तु विधान प्रोजेक्ट्स के आर्किटेक्ट राहुल चेंबूरकर ने बताया कि यह प्याऊ लगभग 50 प्रतिशत टूटा हुआ था। शेर के सिर सहित इसकी अलंकृत विशेषताओं से सुराग लेते हुए, हमने मूल डिजाइन को फिर से बनाने की कोशिश की।” परियोजना के सौंदर्य मूल्य को बढ़ाने के लिए, हमने इसमें तालाब की संकल्पना इसमें शामिल किया है। चेंबूरकर ने कहा, कि इसके जरिये “विचार शहर की फव्वारा संस्कृति को जीवित करने का भी प्रयास है। मूल रूप से संगमरमर से निर्मित, प्याऊ को काले पत्थर, ग्रेनाइट और ग्रे पत्थर का उपयोग करके पुनर्जीवित किया गया है।