राजस्थान में गहलोत की चाल से चित्त हुआ विपक्ष
रमेश सर्राफ धमोरा
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को ऐसे ही राजनीति का जादूगर नहीं कहा जाता है। उन्हें जब भी मौका मिलता है अपनी राजनीतिक जादूगरी के बल पर विरोधियों को चारों खाने चित्त कर देते हैं। विरोधी चाहे विपक्षी दलों के हो या उनकी खुद की पार्टी के हो। मौका मिलते ही वह किसी को नहीं बख्शते हैं। पिछले काफी समय से उन्हें अपनी ही पार्टी के अंदर तगड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इसके उपरांत भी उन्होंने हार नहीं मानी और एक-एक कर अपने सभी विरोधियों को राजनीतिक हाशिए पर पहुंचा दिया। अगले विधानसभा चुनाव में मात्र आठ महीने का समय बचा है। इसीलिए गहलोत राजनीति के मैदान में खुलकर खेल रहे हैं।
पिछले 30 वर्षों से राजस्थान में हर पांच साल बाद सरकार बदलने का मिथक चला आ रहा है। मगर मुख्यमंत्री गहलोत अगले विधानसभा चुनाव में इस मिथक को तोड़ कर फिर से कांग्रेस की सरकार बनाना चाहते हैं। इसीलिए उन्होंने अपना बजट पास करवाते समय राजस्थान में एक साथ 19 नए जिलों व बांसवाड़ा, पाली, सीकर तीन नए संभागों का गठन कर अपने 50 साल के राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा मास्टर स्ट्रोक चल दिया है।
अभी राजस्थान में 33 जिले कार्यरत है। एक नवंबर 1956 को राजस्थान गठन के समय कुल 26 जिले थे। 15 अप्रैल 1982 को भरतपुर से अलग कर धौलपुर प्रदेश का 27 वां जिला बना था। 10 अप्रैल 1991 को एक साथ 3 जिले कोटा से अलग होकर बारां, जयपुर से अलग होकर दौसा व उदयपुर से अलग होकर राजसमंद जिले का गठन हुआ था। 12 जुलाई 1994 को श्री गंगानगर से अलग होकर हनुमानगढ़ राजस्थान का 31वां जिला बना था। 19 जुलाई 1997 को सवाई माधोपुर से अलग होकर करौली को 32 वां जिला बनाया गया था। 26 जनवरी 2008 को उदयपुर, चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा से अलग होकर प्रतापगढ़ 33 वां जिला बना था।
2008 में प्रतापगढ़ के बाद से राज्य में कोई नया जिला नहीं बन पाया। वर्तमान में राजस्थान की आबादी 8 करोड़ से ज्यादा हो चुकी है। पिछले 40 सालों में प्रदेश कि आबादी तो दोगुनी हो गई लेकिन जिले केवल सात ही बढ़े हैं। 1981 तक राजस्थान में 26 जिले थे तब राजस्थान की जनसंख्या करीब 3.6 करोड़ थी। आज के समय में आबादी 8 करोड़ से भी ज्यादा है, लेकिन जिले 33 ही बन पाए। आबादी की तरह जिलों की संख्या नहीं बढ़ी।
राजस्थान में अंतिम जिला 15 वर्ष पूर्व प्रतापगढ़ बना था। उसके बाद से प्रदेश में लगातार नए जिले बनाने की मांग उठती रही थी। मगर राजनीतिक विरोध की संभावना के चलते किसी भी सरकार ने नए जिलों के गठन का जोखिम उठाना राजनीतिक दृष्टि से सही नहीं माना और नये जिलों का गठन टलता रहा। जबकि क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान देश का पहला व आबादी के हिसाब से सातवा सबसे बड़ा प्रदेश है।
जिलों की कमी के चलते प्रदेश में प्रशासनिक कार्यों के लिए लोगों को दूर-दूर भटकना पड़ता है। कई क्षेत्रों में तो जिला मुख्यालय 150 किलोमीटर की दूरी तक स्थित होने से आमजन को बहुत ही परेशानी उठानी पडती है। प्रदेश के आमजन की परेशानियों को दूर करने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक साथ 19 नये जिलों का गठन कर प्रदेश की जनता को एक बहुत बड़ी सौगात दी है। इसका लाभ कांग्रेस को आने वाले विधानसभा चुनाव में भी मिलना तय माना जा रहा है। देश में एक साथ सबसे अधिक जिलों के गठन का रिकॉर्ड भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नाम हो गया है। अब तक किसी भी प्रदेश में एक साथ 19 जिलों का गठन नहीं हुआ है।
प्रदेश में बनाये गए नए जिलों में जयपुर जिले को तोड़कर जयपुर उत्तर, जयपुर दक्षिण, दूदू और कोटपूतली जिला बनाया गया है। जोधपुर को तोड़कर जोधपुर पूर्व, जोधपुर पश्चिम और फलोदी में बांटा गया है। श्रीगंगानगर से अनूपगढ़, बाड़मेर से बालोतरा, अजमेर से ब्यावर और केकड़ी, भरतपुर से डीग, नागौर से डीडवाना-कुचामनसिटी, सवाईमाधोपुर से गंगापुर सिटी, अलवर से खैरथल, सीकर से नीम का थाना, उदयपुर से सलूंबर, जालोर से सांचोर और भीलवाड़ा से शाहपुरा को काटकर नया जिला बनाया गया है। वहीं उदयपुर को काटकर बांसवाड़ा, जोधपुर को काटकर पाली व जयपुर को काटकर सीकर नए संभाग बनाए गए हैं। इन संभाग मुख्यालयों के तहत कौन-कौन से जिले काम करेंगे यह अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है। नये संभागों के गठन में भी क्षेत्रीय संतुलन साधा गया है। शेखावाटी क्षेत्र से सीकर, मारवाड़ क्षेत्र से पाली और आदीवासी बहुल मेवाड़ क्षेत्र से बांसवाड़ा को नया संभाग बनाया गया है।
नए जिलों के गठन में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने राजनीतिक समर्थकों के साथ विरोधियों को भी साधा है। जहां कांग्रेस कमजोर है वहां भी नये जिलों की घोषणा की गई है। ब्यावर में लंबे समय भाजपा के शंकर सिंह रावत जीत रहें हैं। भाजपा राज में ब्यावर जिला नहीं बन पाया। गहलोत ने ब्यावर को जिला बना दिया। जिसे आगे चुनाव में कांग्रेस भुनाएगी। पाली, जालोर और सिरोही में भी कांग्रेस बहुत कमजोर है। पाली को संभाग मुख्यालय बनाना और सांचैर को जिला बनाना भी गहलोत का उस क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने की रणनीति का हिस्सा है। फलोदी, बालोतरा को भी जिला बनाकर गहलोत ने अपनी छवि को मजबूत किया है। बजट पास होने वाले दिन नए जिलों व नए संभागों की घोषणा से विपक्ष निरुत्तर हो गया है। विपक्ष के पास अभी इसकी कोई काट नहीं है।
मुख्यमंत्री गहलोत ने महिलाओं-छात्राओं को आनेवाले रक्षाबंधन पर 40 लाख स्मार्ट फोन देने की बड़ी घोषणा की है। गहलोत ने बजट के दिन उज्ज्वला से जुड़ी महिलाओं को 500 रुपए में सिलेंडर देने की घोषणा की थी। यह प्रदेश की महिला मतदाताओं को साधने की रणनीति है। महिलाओं को फोकस करते हुए गहलोत ने बजट में राजस्थान रोडवेज की साधरण श्रेणी की बसों में राजस्थान सीमा के भीतर महिलाओं का बस किराया आधा कर दिया है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हमेशा नई लीक खींचकर लक्ष्य हासिल करने में विश्वास रखते हैं। इसी को मध्य नजर रखते हुए इस बार का आम बजट पूरी तरह प्रदेश के आमजन की जन आकांक्षाओं को पूरा करने की दृष्टि से बनाया गया है। इसमें आम लोगों को बड़ी राहत दी गई है। चुनावी साल में सभी सरकारें लोक लुभावन बजट पेश करती हैं। इस बार बचत, राहत और बढ़त की थीम के साथ गहलोत द्धारा पेश बजट ने विपक्ष का मुंह बंद कर दिया है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बजट की चर्चा पर जवाब देते हुए कांग्रेस आलाकमान को भी संदेश दे दिया है कि आज भी उनमें सबको साथ लेकर चलने की क्षमता बरकरार है। राजस्थान कांग्रेस में वही एकमात्र ऐसे नेता है जो विरोधियों को पटकनी दे सकते हैं। विरोधी दल कितना भी हल्ला मचाए प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर को रोकने की ताकत उनमें ही है। हर बार सत्ता बदलने का मिथक भी वह इस बार तोड़ देंगे।
इन्हीं सब बातों को देखते हुए अब लगने लगा है कि अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस आलाकमान उन्हें पूरी तरह फ्री हैंड देखकर राजस्थान में फिर से कांग्रेस की सरकार बनाने की जिम्मेदारी सौंप सकता है। अशोक गहलोत ने अपने जादुई पिटारे से सभी लोग लुभावनी घोषणाये तो कर दी है। अब देखना है चुनाव तक उन पर कितना अमल हो पाता है। यदि अशोक गहलोत अपने मिशन में कामयाब होते हैं तो उन्हें चौथी बार मुख्यमंत्री बनने से कोई नहीं रोक पायेगा।
आलेखः-
रमेश सर्राफ धमोरा
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार है।