कांग्रेस के रायपुर महाधिवेशन से एक हुंकार भरी गई है, जिसके स्पष्ट मायने हैं कि अब हमें लडऩा है। संघर्ष करना है। रोते रहने से कुछ हासिल नहीं होगा, लिहाजा हमें मंडल से राष्ट्रीय स्तर तक कई लड़ाइयां लडऩी हैं। इस लड़ाई में जो राहुल गांधी के साथ नहीं चल सकते या संघर्ष करने को तैयार नहीं हैं, वे एक तरफ हो जाएं। कांग्रेस ने फिलहाल तीन माह की समय-सीमा तय की है, जिसके दौरान लड़ाई की दिशा और दशा स्पष्ट हो जानी चाहिए। इस अवधि के दौरान कांग्रेस की लड़ाई प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा, आरएसएस, नफरत और डर, संविधान और लोकतंत्र के खात्मे, सरकारी जांच एजेंसियों के दुरुपयोग आदि तक ही सीमित रहेगी अथवा व्यापक सामाजिक-आर्थिक, राष्ट्रीय मुद्दों के लिए भी संघर्ष किया जाएगा, यह तीन माह के दौरान स्पष्ट होता रहेगा। लड़ाई का सबसे महत्त्वपूर्ण ‘कुरुक्षेत्र’ तय किया गया है-अडानी रूपी ईस्ट इंडिया कंपनी। यानी प्रधानमंत्री मोदी और अडानी के आपसी रिश्तों और उनसे बर्बाद होते देश पर कांग्रेस आक्रामक रुख अख्तियार करेगी। इसके जरिए भाजपा के परंपरागत ‘राष्ट्रवाद’ वाले मुद्दे में छेद करने के प्रयास भी किए जाएंगे।
जिस तरह ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ आज़ादी की लड़ाई लड़ी गई थी, उसी तरह देश के आर्थिक संसाधनों को निगल रही अडानी की कंपनियों और उनके जरिए प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा पर राजनीतिक प्रहार किए जाएंगे। इसमें नया क्या है? यदि यही सब कुछ करना था, तो रायपुर महाधिवेशन बुलाने और उस पर करोड़ों रुपए फूंकने की जरूरत क्या थी? महाधिवेशन के दौरान पूर्व कांग्रेस अध्यक्षों-सोनिया और राहुल गांधी-मौजूदा अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े के भाषणों में वही शब्द, वही तेवर, वही मुद्दे छाए रहे, जो लंबे समय से बोले जा रहे हैं। संसद के भाषणों में भी वही सब कुछ कहा गया, जो महाधिवेशन के दौरान लगातार दोहराया जाता रहा। फर्क इतना-सा ही रहा कि मौजूदा कालखंड में कांग्रेस के संदर्भ में ‘हुंकार और लड़ाई’ जैसे शब्द पहली बार इतना गूंजे। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का दूसरा भाग अरुणाचल प्रदेश से शुरू होकर गुजरात के पोरबंदर, महात्मा गांधी की जन्मस्थली, में समाप्त होगा, यह ख़बर तो कुछ दिन पहले टीवी चैनलों और अख़बारों के जरिए सार्वजनिक हो चुकी है।
इसमें भी नया क्या था? इसके अलावा महंगाई, बेरोजग़ारी, सूक्ष्म-लघु उद्योगों के जरिए रोजग़ार, आर्थिक असमानता खत्म हो, अन्नदाता भूखा न सोए, लोगों के अधिकारों की रक्षा, संस्कृति-संविधान-लोकतंत्र की रक्षा आदि जो लक्ष्य महाधिवेशन के दौरान कांग्रेस ने तय किए हैं, तो पार्टी जरा देश को बताए कि इनमें नया मुद्दा कौन-सा है तथा उसे हासिल कैसे किया जा सकता है। इन मुद्दों की लंबी सूची कांग्रेस मुख्यालय 24, अकबर रोड से जारी की जा सकती थी। जिला, मंडल अध्यक्षों के लिए समय-सीमा तय की जा सकती थी। महाधिवेशन की जरूरत क्या थी? कांग्रेस ने इतना जरूर किया कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव पर मुहर लगाई गई। शीर्षस्थ कांग्रेस कार्यसमिति में 23 के स्थान पर अब 35 सदस्य मनोनीत किए जाएंगे। अध्यक्ष उन्हें मनोनीत करेंगे। एआईसीसी सदस्यों की संख्या बढ़ा कर 1653 की गई है और पार्टी में 50 फीसदी पद उनके लिए आरक्षित होंगे, जिनकी उम्र 50 साल से कम होगी। अब यह देखना गौरतलब होगा कि ये नौजवान कांग्रेसी कौन होते हैं और वे पार्टी के लिए कितना कारगर साबित होते हैं? यह भी स्पष्ट हुआ कि कांग्रेस विपक्षी एकता के लिए किसी भी स्तर पर ‘झुकने’ को तैयार है। अब कांग्रेस के फैसलों से 2024 की राजनीति के मानक तय किए जा सकते हैं।