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खरी-खरी:अशोक वशिष्ठ

by zadmin
vashishth

खरी-खरी
वक़्त न देखे जात-पाँत और वक़्त न देखे पैसा।’

हो ग़रीब-धनवान सभी को वक़्त मिले एक जैसा।

वही सफल जिसने पल-पल का मोल यहाँ पर जाना।
बीत गया पल हाथ न आये फिर पछताना कैसा।।

चला वक़्त के साथ वक़्त का मूल्य यहाँ जो जाना।

जैसा जिसका कर्म वक्त फल दे जैसे का तैसा।। 
अशोक वशिष्ठ 

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