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खरी-खरी:अशोक वशिष्ठ

by zadmin
vashishth

खरी-खरी
देखी हमने जगत की, बड़ी निराली रीत।

धोखा वे ही दें सदा, जिनसे होती प्रीत।।

जिनसे होती प्रीत, घात में वे ही रहते।

जिनको अपना मान, घात हम सहते रहते।।

बनते मिट्ठू मियाँ, मारते हर दम शेखी।

छुरी बगल में दबा, बात करते मुँह देखी।।
अशोक वशिष्ठ 

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