विविधता को हम अपने जीवन का आभूषण मानते हैं.=सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत
नागेशी फोंडा”:हम एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जो राष्ट्र को सुरक्षित, संगठित और समृद्ध बनाये। इतिहास में और यहां तक कि वर्तमान में भी कई लोग हैं ,जो इस लक्ष्य के लिए लगातार काम कर रहे हैं। भले ही हमारा भोजन, पोशाक, बोली, पूजा, संप्रदाय और उप-संप्रदाय अलग-अलग हैं, हम इस भारत माता के पुत्र हैं और हम विविधता को अभिशाप नहीं मानते, इसे अपने जीवन का आभूषण मानते हैं। ऐसा उद्बोधन सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने किया है। वे कंपाल,पणजी में ‘महासंघिक’ कार्यक्रम में स्वयंसेवकों तथा नागरिकों को संबोधित कर रहे थे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी की बैठक 3 जनवरी से नागेशी फोंडा में चल रही थी। इसी पृष्ठभूमि में गोवा प्रान्त ने स्वयंसेवकों की एक ‘महासंघिक’ सभा का आयोजन किया। उपस्थित नागरिक एवं स्वयंसेवकों को प. पू. सरसंघचालक का मार्गदर्शन प्राप्त हुवा।
भारत राष्ट्र अति प्राचीन सभ्यता है। एक राष्ट्र के रूप में भारत की अवधारणा पश्चिमी देशों से भिन्न है। भारत ने हजारों वर्षों से कई सभ्यताओं, संस्कृतियों और राष्ट्रों का उत्थान और पतन देखा है, लेकिन भारत एक राष्ट्र के रूप में आज भी मौजूद है, सनातन है, चिरंतन है ,लेकिन हम अन्य सभ्यताओं के बारे में ऐसा नहीं कह सकते। अध्ययन, वाणिज्य और समाज के सभी क्षेत्रों में हजारों वर्षों से आज भी कई बुद्धिमान लोग कार्यरत हैं। लेकिन फिर भी हमारे देश पर आक्रमण हुआ और हम कई वर्षों तक गुलाम रहे। तब भी समाज में बुद्धिमान और निपुण लोगों की कमी नहीं थी, लेकिन समाज में कुछ असामाजिक तत्व थे जिन्होंने समाज के प्रतिरोध को कम कर दिया। समाज का उत्थान और देश का उत्थान हमेशा एक दूसरे के समानांतर होते हैं, इसलिए समाज का निर्माण होता है तो देश का निर्माण होता है और संघ यही कार्य कर रहा है।
इसके लिए प.पू. डॉ. हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। संघ में हम व्यक्तियों के निर्माण पर काम करते हैं। संघ का काम समाज में संगठन बनाना नहीं बल्कि पूरे समाज को संगठित करना है। संघ संस्कार से परिपक्व होकर स्वयंसेवक समाज में जहां भी जरूरत होती है वहां काम करने जाते हैं और इसी तर्ज पर देश में करीब डेढ़ लाख सेवा कार्य चल रहे हैं। वे स्वतंत्र, स्वायत्त और आत्मनिर्भर हैं, और संघ के हाथ में इन संगठनों का ‘रिमोट कंट्रोल’ जैसी कोई चीज नहीं है। और संघ को भी किसी को रिमोट कंट्रोल से नहीं चलाना चाहता।
आज पूरी दुनिया में संघ का नाम जाना जाता है। संघ क्या करता है, इसके केवल दर्शक न बनें, और संघ के बारे में दूसरे क्या कहते हैं, इसे न सुनें, स्वयंसेवा करें और संघ के साथ खुद को जोड़कर संघ को समझें। श्री मोहन जी ने कहा कि डरपोक और स्वार्थी व्यक्तियों को संघ से दूर रहना चाहिए, इससे उनका और संघ का भला है। संघ का काम आसान नहीं है, लेकिन इसके लिए धर्म, समाज और देश के प्रति समर्पण और मेहनत की आवश्यकता होती है। जब आप इस देश में जन्म लेते हैं तो आप पर ईश्वर का ऋण, पिता का ऋण और ऋषि का ऋण होता है। पंचमहाभूत और सारी प्रकृति ईश्वर के प्रति हमारे ऋण का हिस्सा है। उन्होंने विशेष रूप से उल्लेख किया कि हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम अपने विकास के दौरान पर्यावरण का दोहन न करें, हमें पर्यावरण के पूरक विकास पर बल देना चाहिए, हमारा व्यवहार पर्यावरण पूरक होना चाहिए क्योंकि ऐसा करने का अधिकार सभी को है।
हमें एक समाज के रूप में वसुधैव कुटुम्बकम मंत्र का अभ्यास करने के लिए सशक्त होना चाहिए। अच्छे स्वभाव का ढोंग नहीं करना चाहिए, मजबूत होना चाहिए और सभी के प्रति अपनेपन की भावना रखनी चाहिए। जीवन के किसी भी स्तर पर जातिगत भेदभाव को कभी भी प्रवेश न करने देने के लिए अच्छे स्वभाव के साथ व्यवहार करना चाहिए। उसके लिए नियमित एक घंटा शाखा जाना जरूरी है।इसलिए उन्होंने श्रोताओं से संघ में आने, संघ के कार्यकर्ता बनने की अपील की। इस सांघिक के अवसर पर कार्यक्रम में गोसेवा गतिविधियों से बने गौ उत्पादों और गोवा के इतिहास पर एक प्रदर्शनी एवं संघ साहित्य नागरिकों के लिए उपलब्ध कराया गया। इस अवसर पर अर्जुन चांडेकर, कोंकण प्रांत के सह संघचालक और गोवा विभाग संघचालक राजेंद्र भोबे उपस्थित थे। इस कार्यक्रम की प्रस्तावना परिचय एवं धन्यवाद प्रस्ताव गोवा गोवा विभाग सह कार्यवाह एकनाथ मोरुडकर ने किया।