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राजस्थान में टूटेगा सत्ता बदलने का मिथक ?

by zadmin
ramesh

राजस्थान में टूटेगा सत्ता बदलने का मिथक ?

रमेश सर्राफ धमोरा

राजस्थान में अगले साल दिसंबर के प्रथम सप्ताह में विधानसभा के चुनाव होने हैं। ऐसे में प्रदेश में सक्रिय सभी राजनीतिक दलों ने अपनी राजनीतिक गतिविधियों व कार्यक्रम को तेज दिया है। सभी दलों ने चुनाव की जोर शोर से तैयारियां शुरू कर दी है। राजस्थान में फिलहाल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस की सरकार चला रहे हैं। वही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में है। 1993 के विधानसभा चुनाव से राजस्थान में सरकार बदलने का रिवाज चला आ रहा है। यहां एक बार भाजपा की तो अगली बार कांग्रेस की सरकार बनती रही है। पिछले 30 वर्षों से चले आ रहे इस मिथक को अभी तक कोई भी राजनीतिक दल नहीं तोड़ पाया है। इस बार सत्तारूढ़ कांग्रेस के नेता दावा कर रहे हैं कि हम हर बार सत्ता बदलने के मिथक को तोड़ कर लगातार दूसरी बार प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाएंगे। वहीं भाजपा के नेता कांग्रेस को हराने का दावा कर रहे हैं।

राजस्थान में तीसरा मोर्चा कभी मजबूत नहीं रहा है। 1990 के विधानसभा चुनाव में जनता दल अवश्य कुछ प्रभावी रहा था। मगर वह भी तब जब उसने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। तीसरा मोर्चा के नाम पर राजस्थान में बसपा का अवश्य कुछ प्रभाव है। 2018 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने प्रदेश में 6 सीटों पर जीत हासिल कर 4 प्रतिशत मत पाये थे। उस समय हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी पहली बार चुनाव मैदान में उतरी थी। उसे 3 सीटों पर जीत मिली थी तथा 2.4 प्रतिशत मत मिले थे।

अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) ने भी राजस्थान की अधिकांश सीटों पर चुनाव लड़ा था। मगर उसके किसी भी प्रत्याशी को एक हजार वोट भी नहीं मिल पाने के कारण एक प्रतिशत से भी कम वोट हासिल कर पाई थी। माकपा ने 2 सीटों पर, राष्ट्रीय लोक दल ने एक सीट पर व भारतीय ट्राईबल पार्टी ने 2 सीटों पर जीत हासिल की थी। मगर इन में से किसी भी पार्टी को 1 प्रतिशत से अधिक वोट नहीं मिल पाए थे।

आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस व भाजपा में मुकाबला होगा। इसके साथ ही आम आदमी पार्टी भी इस बार चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने का दावा कर रही है। हाल ही में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त होने के बाद आप पार्टी के नेताओं का मनोबल बहुत बढा हुआ है। गुजरात विधानसभा चुनाव में 12.92 प्रतिशत वोट व पांच विधानसभा सीटें जीतकर आम आदमी पार्टी ने गुजरात में कांग्रेस व भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी। आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों को काफी वोट मिलने के कारण ही गुजरात में कांग्रेस को पहली बार करारी हार झेलनी पड़ी। गुजरात विधानसभा चुनाव में आप पार्टी ने कांग्रेस के वोट कटवा पार्टी की भूमिका निभा कर भाजपा को बड़ा लाभ पहुंचाया था। आप पार्टी के द्वारा वोट काटने के कारण ही कांग्रेस 77 सीटों से सिमटकर 17 पर आ गई तथा पार्टी के वोट प्रतिशत भी घटकर 27.28 प्रतिशत रह गए।

राजस्थान में भी आप गुजरात का खेल दोहराना चाहती है। गुजरात विधानसभा के चुनाव में तो आप पर आरोप भी लगे थे कि वह भाजपा से मिलकर कांग्रेस को कमजोर कर रही है। गुजरात में अपने कदम जमाने के बाद अब आम आदमी पार्टी राजस्थान की ओर रुख करने जा रही है। आम आदमी पार्टी ने यह तय कर लिया है कि अब उनका अगला लक्ष्य राजस्थान होगा। इसके लिए अगले साल जनवरी महीने से ही तैयारियां शुरू हो जाएंगी। जनवरी में आम आदमी पार्टी की टीमें राजस्थान आ जाएंगी।

गुजरात में 5 सीटें जीतने और राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनने के बाद आम आदमी पार्टी के हौसले बुलंद हैं। ऐसे में अब आम आदमी पार्टी राजस्थान में अपने पैर जमाना चाहती है। गुजरात की तर्ज पर ही पूरे जोर-शोर के साथ आप पार्टी राजस्थान में भी चुनाव लड़ेगी। गुजरात की तर्ज पर राजस्थान में भी विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी राष्ट्रीय संगठन प्रभारी और आप के राज्यसभा सांसद संदीप पाठक को ही दी गई है। वे ही राजस्थान में चुनाव की जिम्मेदारी संभालेंगे। आप के प्रदेश प्रभारी विनय मिश्रा पहले से ही राजस्थान में सक्रिय हैं

आप पार्टी सूत्रों का कहना है कि जनवरी से पार्टी राजस्थान में सक्रियता के साथ अपना काम शुरू कर देगी। प्रारंभिक तौर पर सर्वे हो चुके हैं। जनवरी से आगे के सर्वे भी शुरू हो जाएंगे। इसके अलावा सदस्यता भी तेजी से बढ़ाई जाएगी। राजस्थान में भी दिल्ली और पंजाब की तर्ज पर ही आम आदमी पार्टी चुनाव लड़ेगी। दिल्ली और पंजाब की ही तरह विकास के मॉडल को आगे रखेगी। राजस्थान में आम आदमी पार्टी चेहरों की तलाश में है। ऐसे में जनवरी से पार्टी की वर्किंग इस ओर भी शुरू होगी।

आप पार्टी के सूत्रों का कहना है कि राजस्थान में कांग्रेस व भाजपा दोनों ही पार्टियों से जुड़े कुछ युवा नेताओं से वह संपर्क में है। साथ ही नए चेहरों को भी जोड़ने की तैयारी है। विनय मिश्रा के मुताबिक हमने राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के सर्वे करवाए हैं। इनमें राजस्थान के सर्वे बहुत अच्छे आए हैं। राजस्थान के लोग बदलाव चाहते हैं। एंटी इनकंबेंसी और दोनों पार्टियों में जो खींचतान है। उसको देखते हुए लग रहा है कि हम अच्छा कर सकते हैं। राजस्थान बदलाव चाह रहा है।

विनय मिश्रा के मुताबिक हमने सारी चुनौतियों का विश्लेषण किया है। राजस्थान बहुत बड़ा है। देश का 10वां हिस्सा है। हम ईमानदार पार्टी हैं। बाकी पार्टियां बड़ी पार्टियां है। उनके पास हेलिकॉप्टर और प्लेन वगैरह है। जबकि हमारे मुख्यमंत्रियों ने गुजरात में रोड से यात्रा करके प्रचार किया है। मगर राजस्थान में यह संभव नहीं है। प्रचार के लिए राजस्थान में हमें अलग रणनीति बनानी पड़ेगी।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी की राजस्थान में 18 दिनों तक चली भारत जोड़ो पदयात्रा से कांग्रेस का मनोबल बहुत बढ़ा हुआ है। राहुल गांधी की मौजूदगी के चलते प्रदेश में कांग्रेस नेताओं की आपसी गुटबाजी पर भी लगाम लगा था। वही सांगठनिक रुप से भी पार्टी मजबूत हुई है। कांग्रेस के नए प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा पार्टी को सांगठनिक रूप से और अधिक मजबूत करने का प्लान तैयार कर रहे हैं।

राहुल गांधी ने भी अपनी पदयात्रा के अंतिम दिन अलवर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व सचिन पायलट के साथ बंद कमरे में दो घंटे तक मीटिंग करें उन्हें आपसी गिले-शिकवे दूर करने की हिदायत दी है। अगले कुछ दिनों में राजस्थान कांग्रेस में मंत्रिमंडल व संगठन में जो बदलाव होना है वह पूरा हो जाएगा। उसके बाद पार्टी पूरी चुनावी माहौल में सक्रिय हो जाएगी। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का अगला बजट भी पूरी तरह चुनावी होगा। जिसमें प्रदेश के आम मतदाताओं को लुभाने के लिए कई घोषणाएं व वादे किए जाएंगे।

भाजपा भी प्रदेश में कांग्रेस सरकार के खिलाफ जनाक्रोश यात्राएं निकाल रही है। हालांकि भाजपा में नेता पद की लड़ाई जोरों से है तथा पार्टी कई गुटों में बंटी हुई है। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं को एक जाजम पर बैठाने के लिए बार-बार मशक्कत करनी पड़ रही है। भाजपा में चल रही आपसी गुटबाजी के कारण ही गहलोत चार साल से लगातार बिना किसी बाधा के शासन चला रहे हैं।

प्रदेश मे आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी व बसपा प्रदेश के मतदाताओं पर कितना प्रभाव डाल पाती है। इसका पता तो विधानसभा चुनाव के नतीजों से ही चल पाएगा। बहरहाल तो सभी राजनीतिक दल चुनाव जीतने की गोटिया बैठाने में जुटे हुए नजर आ रहे हैं।

आलेखः-

रमेश सर्राफ धमोरा

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