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खरी-खरी:अशोक वशिष्ठ

by zadmin
vashishth

खरी-खरी

रिश्तों पर भी पड़ रही, महंगाई की मार।
प्लेटफॉर्म के टिकट की, कीमत बेशुमार।।
कीमत बेशुमार,भरी यदि जेब तुम्हारी।
तब ही जाओ साथ, हो गहरी रिश्तेदारी।।
घर से ही टाटा करो, नहीं न जाओ साथ।
सौ-पचास अरु डेड़ सौ, से धोओगे हाथ।।

अशोक वशिष्ठ 

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