निरंजन परिहार
मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राजस्थान की राजनीति में नयी गर्माहट आ गयी है। राजनीति में ‘जादूगर’ के नाम से विख्यात अशोक गहलोत से मुख्यमंत्री का पद पाने के प्रयास में तीन बार मात खाने के बाद सचिन पायलट ने अब खुद को ‘बाजीगर’ के रूप में स्थापित करने की नई कोशिशें शुरू की हैं।पायलट की ओर से तर्क यही गढ़ा जा रहा है कि बाजी पलटने की क्षमता उन्हीं में है और 2018 में मोदी लहर में भी प्रदेश अध्यक्ष के रूप में बाजी जीतते हुए वे ही 100 सीटें जिताकर राजस्थान में कांग्रेस की सरकार लाए थे। हालांकि, बाद में तो खैर बीजेपी के साथ मिलकर राजस्थान में अपनी ही पार्टी की सरकार गिराने की कोशिश के आरोप में पायलट को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व उपमुख्यमंत्री दोनों पदों से बर्खास्त भी कर दिया गया था, लेकिन अब फिर से मुख्यधारा में आने के लिए, ‘बाजीगर’ के रूप में उनकी यह नई बिसात है। सियासी हलकों में ‘बाजीगर’ पायलट का नैरेटिव सेट किया जा रहा है। कांग्रेस आलाकमान के आकाश में सितारे की तरह ‘बाजीगर’ को कैसे चमकाया जाए, इस काम में राजधानी के वे घाघ लोग जुटे हुए हैं, जो एजेंडा सेट करने के उस्ताद माने जाते हैं। चुनिंदा पत्रकारों व कांग्रेस के कुछ चालाक नेताओं ने उन्हें ‘बाजीगर’ बताना भी शुरू कर दिया हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष पद पर जीतते ही सचिन पायलट की उम्मीदों का आसमान उछाल मारने लगा था। दीपावली के बाद, अब जब खड़गे ने अधिकारिक रूप से पद सम्हाल लिया है, तो ‘बाजीगर’ बनने की इस नई बिसात पर पायलट निश्चित रूप से गहलोत को बेदखल करने की एक और कोशिश जल्द ही जरूर करेंगे, यह पक्के तौर पर माना जा रहा है। वैसे, ‘जादूगर’ गहलोत के सामने ‘बाजीगर’ बनने की पायलट की कोशिश महज मुख्यमंत्री की बराबरी में आने के शाब्दिक खेल से ज्यादा कुछ नहीं है। हालांकि, कांग्रेसी राजनीति के जानकार संदीप सोनवलकर मानते हैं कि बीते चार साल से लगातार सियासी घमासान मचाए रखने में पायलट जरूर सफल रहे, जिसका कांग्रेस को भले ही नुकसान हुआ, लेकिन निजी तौर पर पायलट को बड़ा लाभ यह हुआ कि 14 जुलाई 2020 को उपमुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जैसे दो दो पदों से एक साथ बर्खास्त कर दिए जाने के बावजूद वे पार्टी में बड़े नेता के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर अब भी सक्रिय हैं और गहलोत के विकल्प भी। राजनीतिक विश्लेषक सोनवलकर कहते हैं कि पायलट अगर, शांत बैठते, तो पॉलिटिकल परिदृश्य से ही पूरी तरह से आउट हो जाते। अब, जब मल्लिकार्जुन खड़गे ने 26 अक्टूबर को अधिकारिक रूप से कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभाल लिया है, तो पायलट के प्रबंधकों द्वारा प्रचारित किया जा रहा है कि संगठन में शीर्ष स्तर पर सत्ता परिवर्तन के बाद अब राजस्थान की सत्ता भी बदलेगी। मगर, खड़गे ने कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव भले ही आसानी से जीता लिया, पर गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटाना गांधी परिवार और खड़गे दोनों के लिए भी आसान नहीं है। क्योंकि गहलोत समर्थक 92 विधायकों और मंत्रियों ने 24 सितंबर 2020 को विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को जो इस्तीफे सौंपे थे, उन पर फैसला अभी बाकी है। ऐसे में क्या तो आलाकमान और क्या खड़गे, गहलोत के खिलाफ फैसला कैसे करेंगे, क्योंकि संभावना सरकार के गिरने की भी तो है। यह भी पढ़ें: Congress President Election: संघ परिवार से सबक सीखे सोनिया परिवार हालांकि, राजस्थान में मुख्यमंत्री बदलने की आलाकमान की कोशिश के खिलाफ 92 विधायकों के इस्तीफों पर पायलट प्रबंधकों का प्रचार यह भी है कि आलाकमान को आंख दिखाने की वजह से गांधी परिवार गहलोत से नाराज है। जबकि, विधायकों की नाफरमानी पर सोनिया गांधी से मिलकर गहलोत माफीनामा घोषित करते हुए अपनी 50 साल की राजनीतिक निष्ठा भी सार्वजनिक रूप से व्यक्त कर चुके हैं। इधर, मीडिया के हर सवाल के जवाब में अगली बार फिर से राजस्थान में कांग्रेस की सरकार लाने की बात कहते हुए पायलट फिर मुख्यधारा में समाहित होने की कोशिश करते दिखते हैं, और ‘जादूगर’ गहलोत के सामने ‘बाजीगर’ पायलट का नया नैरेटिव उनकी इसी कोशिश का प्रमाण है। एक तरफ तो गहलोत के समर्थन में 92 विधायकों के इस्तीफों की दीवार खड़ी है, तो दूसरी ओर गहलोत ने उन गौतम अडानी को पूरे सम्मान के साथ राजस्थान बुलाकर 60 हजार करोड़ रुपए का निवेश करवाया, जिनको राहुल गांधी नियमित रूप से कोसते रहते हैं। इस रणनीतिक समझदारी के साथ ही पायलट पर भी गहलोत लगातार हमलावर हैं। मुख्यमंत्री बनने की पायलट की लालसा पर तंज कसते हुए गहलोत ने कहा कि जिन्हें बिना रगड़ाई ही बड़े पद मिल गए, वे देश में फितूर कर रहे हैं। गहलोत ने लगभग चेतावनी की भाषा में तंज कसा कि जितनी जल्दबाजी करेंगे, उतनी ही ठोकरें खाते रहेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि युवा मेहनत कर सकते है, लेकिन अनुभव का कोई विकल्प नहीं होता। ज्ञात हो कि गहलोत को अनुभवों के आधार पर ही सत्ता हासिल है। वे तीन प्रधानमंत्रियों इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और नरसिम्हाराव के साथ केंद्र में मंत्री रहे हैं। पांच बार सांसद और पांच बार विधायक, तीन बार अखिल भारतीय कांग्रेस के महासचिव और तीन बार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष होने के साथ साथ तीसरी बार मुख्यमंत्री भी हैं। राजस्थान में अगले साल नवंबर में चुनाव हैं, और पायलट को यह तो समझ है ही कि मुख्यमंत्री जनता नहीं, आलाकमान बनाता है, सो आलाकमान के सामने वे ‘बाजीगर’ का नया नैरेटिव स्थापित करने की कोशिश में हैं। निश्चित रूप से सचिन उत्साही हैं और युवा भी। लेकिन सात साल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष होने के बावजूद, अपने साथ सिर्फ 16 विधायक ही जोड़ पाए, फिर भी कांग्रेस नेतृत्व खड़गे के हाथ आने पर राजस्थान में भी नेतृत्व परिवर्तन का प्रचार भले हो, लेकिन गांधी परिवार और खड़गे यह तो जान ही रहे हैं कि गहलोत को हटाना खतरे से खाली नहीं होगा। 92 विधायकों के इस्तीफों पर फैसला लटकाकर गहलोत ने हर बाजी पलटने का जादू भी अपनी झोली में रखा है। फिर भी, राजनीति में कौन सी आफत कब, कहां से, कैसे, टपक पड़े, कौन जानता है?