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खरी-खरी:अशोक वशिष्ठ

by zadmin
vashishth

खरी-खरी
पर्वत नदियाँ समुंदर , झरने जल प्रपात।।
सूर्य चंद्र धरती गगन, ईश्वर की सौगात।

ईश्वर की सौगात , संजोकर इनको रखिए।
वृक्ष प्रकृति वरदान, नाश मत इनका करिए।।

रूठ गयी यदि प्रकृति, होगा महाविनाश।

इनके आगे नहीं कुछ, मानव की औकात।।
अशोक वशिष्ठ 

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