Home विविधासाहित्य खरी-खरी:अशोक वशिष्ठ

खरी-खरी:अशोक वशिष्ठ

by zadmin
vashishth

खरी-खरी


कहीं बारिश का तांडव, कहीं सूखे की मार।

समझ नहीं आता कभी, मौसम का व्यवहार।।

मौसम का व्यवहार, बदलता हर पल रहता।

और मौसम की मार, आदमी सहता रहता।।

त्राहि-त्राहि होती वहाँ, जहाँ पड़े अति वृष्टि।

सूखा भी पड़ता कहीं, अजब राम की सृष्टि।।
अशोक वशिष्ठ 

You may also like

Leave a Comment