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हिंदी और भारतीय भाषाओं में न्याय की मांग

by zadmin

हिंदी और भारतीय भाषाओं में न्याय की मांग मनुष्यता का तकाजा है। इस देश में 82 % लोग हिंदी और 98% से अधिक लोग भारतीय भारतीय भाषाओं का प्रयोग करते हैं। यदि हमारे सभी उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय हिंदी और भारतीय भाषाओं में बहस की अनुमति तथा निर्णय नहीं देते हैं तो यह देश के 98% लोगों के मानवाधिकार का उल्लंघन है।यह संविधान की मूल भावना के भी विरुद्ध है।हमें न्याय के प्रश्न को मानवाधिकार से जोड़ना होगा तभी हमारे न्यायमूर्ति इसको गंभीरता से लेंगे। अब जब भारत सरकार का रवैया अनुकूल है तो यह हम भारतीयों के समक्ष एक सुनहरा अवसर है। हमें एकजुट होकर जनभाषा के संघर्ष को समर्थन देना होगा और न्याय का दरवाजा हिंदी और भारतीय भाषाओं के लिए खुलवाना होगा।ऐसा करके ही हम उन जिम्मेदारियों का सम्यक निर्वाह कर सकते हैं जिसे इतिहास ने हमें सौंपा है।यदि हम समवेत स्वर में आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में भारत सरकार से मांग करें कि हिंदी और भारतीय भाषाओं में न्याय पाना हर भारतीय नागरिक का स्वाभाविक अधिकार है तो आजादी का अमृत महोत्सव वर्ष सार्थक हो जाएगा।   

डाॅ.करुणाशंकर उपाध्याय,   वरिष्ठ प्रोफेसर, हिंदी विभाग,   मुंबई विश्वविद्यालय , मुंबई-400098

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