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खरी-खरी: अशोक वशिष्ठ

by zadmin
vashishth

खरी-खरी
फिर से मंदिर-मस्जिदें, बनने लगे विवाद।

सामाजिक सौहार्द न बिगड़े, रहे सभी को याद।।

रहे सभी को याद , न टूटे ताना-बाना।

मिलजुलकर हम सबको, आगे बढ़ते जाना।

 भक्तिभाव ही निकले, मस्जिद और मंदिर से।

बढ़े न खाई और , बीच की यारो फिर से।।
अशोक वशिष्ठ 

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