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खरी-खरी:☆अशोक वशिष्ठ

by zadmin
vashishth

खरी-खरी
आम आदमी की नहीं , करता कोई बात।

सब के सब करने लगे, एक दूजे पर घात।।

एक दूजे पर घात, जमाते अपनी गोटी।

सदनों में गिरता स्तर, अरु बातें छोटी।।

जीना मुश्किल हो रहा, बढ़ते जाते दाम।

छूट गया पीछे बहुत, आज आदमी आम।।
☆अशोक वशिष्ठ 

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