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खरी-खरी:☆अशोक वशिष्ठ

by zadmin
vashishth

खरी-खरी
गिरता जाता रुपैया , डाॅलर हुआ पहाड़।

भीगी बिल्ली रुपैया , डाॅलर शेर दहाड़।।

डाॅलर शेर दहाड़ , नहीं कब्जे में आता।

दिन पर दिन डाॅलर, तगड़ा ही होता जाता।

।महँगाई का संकट , प्रतिदिन घिरता जाता।

चिंता की है बात , रुपैया गिरता जाता।।
☆अशोक वशिष्ठ 

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