ईश्वर की पहचान से मन के सारे भ्रम समाप्त हो जाते हैं
– सत्गुरु माता सुदीक्षा जी
नवी मुंबई 3 मई: ईश्वर की पहचान हो जाने से मन के सारे भ्रम समाप्त हो जाते हैं और उसके साथ प्रेम करके भक्ती का सफर शुरु हो जाता है तथा जीवन आनंदमय हो जाता है। फिर यह आनंद मनुष्य स्वयं तक सीमित नहीं रखता अपितु हर किसी से बांटने का प्रयास करता है।” ये उद्गार निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज ने रविवार, १ मई, को खारघर, नवी मुंबई के सैन्ट्रल पार्क के पास सिडको मैदान में विशाल रूप में आयोजित एक दिवसीय निरंकारी संत समागम में व्यक्त किए। इस कार्यक्रम में पूरे मुंबई महानगर एवं आसपास के जिलों से हजारों की संख्या में निरंकारी भक्तों ने सम्मिलित होकर सतगुरु माता जी के दिव्य दर्शन एवं अनमोल प्रवचनों का आनंद प्राप्त किया.सत्गुरु माता जी ने आगे कहा कि इस संसार में मनुष्य के आने का वास्तविक उद्देश्य निरंकार को जानकर स्वयं की पहचान करना है। परमात्मा के दर्शन करने के उपरांत हमारा मन सहज रूप में उसके साथ जुड़ जाता है और तब मन के अंदर परिवर्तन आ जाता है। यह प्रक्रिया बड़ी सहजता से होती है, इसके लिए कोई और प्रयास नहीं करना पड़ता। वास्तव में किसी और यत्न से मन में परिवर्तन आना संभव भी नहीं।
सत्गुरू माता जी ने प्रतिपादन किया कि परमात्मा के दर्शन के उपरांत इसके निरंतर अहसास से मन के अंदर मानवीय गुण उत्पन्न हो जाते हैं। मन निर्मल हो जाता है और कोई पराया नहीं दिखता। किसी के प्रति बुरे भाव भी मन में उत्पन्न नहीं होते। ऐसा जीवन जीने वाला मनुष्य एक पूर्ण संत की अवस्था को प्राप्त कर लेता है | और ऐसा जीवन प्रत्येक मनुष्य के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन जाता है।
सत्गुरू माता जी ने कहा वास्तव में परमात्मा के साथ हर किसी का व्यक्तिगत नाता होता है, भक्ति हर किसी की व्यक्तिगत यात्रा है। दूसरे का अनुकरण या नकल करके हमें आनंद की अवस्था कभी भी प्राप्त नहीं हो सकती। इसके लिए हमें स्वयं के अंतःकरण को इस परमात्मा से जोड़ना होगा उसके पश्चात् ही वास्तविक आनंद की अनुभूति प्राप्त होगी।