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क्यों नारी बेचैन ●- सत्यवान ‘सौरभ’

by zadmin

क्यों नारी बेचैन ●●●
नारी मूरत प्यार की, ममता का भंडार ।

सेवा को सुख मानती, बांटे खूब दुलार ।।

●●●अपना सब कुछ त्याग के, हरती नारी पीर ।

फिर क्यों आँखों में भरा, आज उसी के नीर ।।

●●●रोज कहीं पर लुट रही, अस्मत है बेहाल ।

खूब मना नारी दिवस, गुजर गया फिर साल ।।

●●●थानों में जब रेप हो, लूट रहे दरबार ।

तब ‘सौरभ’ नारी दिवस, लगता है बेकार ।।

●●●सिसक रही हैं बेटियां, ले परदे की ओट ।

गलती करे समाज है, मढ़ते उस पर खोट ।।

●●●नहीं सुरक्षित आबरू, क्या दिन हो क्या रात ।

काँप रहें हम देखकर, कैसे ये हालात ।।

●●●महक उठे कैसे भला, बेला आधी रात ।

मसल रहे हैवान जो, पल-पल उसका गात ।।

●●●जरा सोच कर देखिये, किसकी है ये देन ।

अपने ही घर में दिखे, क्यों नारी बेचैन ।।

●●●रोज कराहें घण्टियाँ, बिलखे रोज अजान ।

लुटती नारी द्वार पर, चुप बैठे भगवान ।।

●●●नारी तन को बेचती, ये है कैसा दौर ।

मूरत अब वो प्यार की, दिखती है कुछ और ।।

●●●नई सुबह से कामना, करिये बारम्बार ।

हर बच्ची बेख़ौफ़ हो, पाये नारी प्यार ।।

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– सत्यवान ‘सौरभ’

रिसर्च स्कॉलर, कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, 

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