इस महाशिवरात्रि बन रहा है शत्रुओं पर विजय हासिल करने का योग
महाशिवरात्रि हिन्दुओं के सबसे बड़े पर्वों में से एक है। दक्षिण भारतीय पंचांग (अमावस्यान्त पंचांग) के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को यह पर्व मनाया जाता है। वहीं उत्तर भारतीय पंचांग (पूर्णिमान्त पंचांग) के मुताबिक़ फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का आयोजन होता है। गौरतलब है कि पूर्णिमान्त व अमावस्यान्त दोनों ही पंचांगों के अनुसार महाशिवरात्रि एक ही दिन पड़ती है, इसलिए अंग्रेज़ी कैलेंडर के हिसाब से पर्व की तारीख़ वही रहती है। इस दिन शिव-भक्त मंदिरों में शिवलिंग पर बेल-पत्र आदि चढ़ाकर पूजा, व्रत तथा रात्रि-जागरण करते हैं। हिंदी में महाशिवरात्रि को ‘भगवान शिव की महान रात’ भी कहा जाता है.यह शुभ अवसर वह समय होता है जब भगवान शिव और देवी शक्ति की दिव्य शक्तियां एक साथ आती हैं। यह भी माना जाता है कि इस दिन ब्रह्माण्ड आध्यात्मिक ऊर्जा को आसानी से विकसित करता है।
ज्योतिषिय शास्त्र के अनुसार इस वर्ष महाशिवरात्रि पर धनिष्ठा नक्षत्र में परिघ योग रहेगा। धनुष्ठा के बाद शतभिषा नक्षत्र रहेगा। जबकि परिध योग के बाद शिव योग लगेगा। परिध योग में शत्रुओं के खिलाफ बनाई रणनीतियों में सफलता मिलती है। यानी शत्रुओं पर विजय हासिल करने के लिए इसे बहुत महत्वपूर्ण समझा जाता है।सिर्फ यही नही ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री जी का कहना है कि महाशिवरात्रि पर इस बार ग्रहों का विशेष योग बन रहा है। 12वें भाव में मकर राशि में पंचग्रही योग बनेगा। इस राशि में मंगल और शनि के साथ बुध, शुक्र और चंद्रमा रहेंगे। लग्न में कुंभ राशि में सूर्य और गुरु की युति बनी रहेगी। चौथे भाव में राहु वृषभ राशि में रहेगा, जबकि केतु दसवें भाव में वृश्चिक राशि में रहेगा।
महाशिवरात्रि व्रत की पूजा-विधि: 1. मिट्टी के लोटे में पानी या दूध भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के फूल, चावल आदि डालकर ‘शिवलिंग’ पर चढ़ाना चाहिए। अगर आस-पास कोई शिव मंदिर नहीं है, तो घर में ही मिट्टी का शिवलिंग बनाकर उनका पूजन किया जाना चाहिए। 2. शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप इस दिन करना चाहिए। साथ ही महाशिवरात्री के दिन रात्रि जागरण का भी विधान है। 3. शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार शिवरात्रि का पूजन ‘निशीथ काल’ में करना सर्वश्रेष्ठ रहता है। हालाँकि भक्त रात्रि के चारों प्रहरों में से अपनी सुविधानुसार यह पूजन कर सकते हैं।।महाशिवरात्रि से जुडी कई पौराणिक कथाएँ:शिवरात्रि को लेकर बहुत सारी कथाएँ प्रचलित हैं। विवरण मिलता है कि भगवती पार्वती ने शिव को पति के रूप में पाने के लिए घनघोर तपस्या की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसके फलस्वरूप फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। यही कारण है कि महाशिवरात्रि को अत्यन्त महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है। विशेष रूप से अच्छे पति की चाह रखनेवाली कुंवारी कन्याएं इस व्रत को ख़ास तौर से रखती हैं।
वहीं गरुड़ पुराण में इस दिन के महत्व को लेकर एक अन्य कथा कही गई है, जिसके अनुसार इस दिन एक निषादराज अपने कुत्ते के साथ शिकार खेलने गया किन्तु उसे कोई शिकार नहीं मिला। वह थककर भूख-प्यास से परेशान हो एक तालाब के किनारे गया, जहाँ बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था। अपने शरीर को आराम देने के लिए उसने कुछ बिल्व-पत्र तोड़े, जो शिवलिंग पर भी गिर गए। अपने पैरों को साफ़ करने के लिए उसने उनपर तालाब का जल छिड़का, जिसकी कुछ बून्दें शिवलिंग पर भी जा गिरीं। ऐसा करते समय उसका एक तीर नीचे गिर गया; जिसे उठाने के लिए वह शिव लिंग के सामने नीचे को झुका। इस तरह शिवरात्रि के दिन शिव-पूजन की पूरी प्रक्रिया उसने अनजाने में ही पूरी कर ली। मृत्यु के बाद जब यमदूत उसे लेने आए, तो शिव के गणों ने उसकी रक्षा की और उन्हें भगा दिया। इस तरह निषादराज को यह एहसास हुआ कि जब अज्ञानतावश महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर की पूजा का इतना अद्भुत फल है,.
ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री जी के अनुसार महाशिवारात्रि की पूजा के छ: महत्वपूर्ण तत्व हैं जिनका उपयोग महाशिवरात्रि पूजन के दौरान निश्चित तौर पर किया जाना चाहिए। गौरतलब है कि प्रत्येक एक विशेष अर्थ का प्रतीक है।1) शिव लिंगम का जल और दूध से स्नान और बेल के पत्तों से आत्मा की शुद्धि होती है2) स्नान के बाद सिंदूर पुण्य का प्रतीक है।3) पूजा करते समय चढ़ाए गए फल इच्छाओं और दीर्घायु की पूर्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं।4) अगरबत्ती जलाना धन का प्रतीक है।5) पान का पत्ता सांसारिक इच्छाओं से संतुष्टि दर्शाते हैं।6) दीपक को जलाना ज्ञान और बुद्धिमानी की प्राप्ति का प्रतीक है।
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ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री
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