खरी-खरी
लिख देती है जीत कहीं, तो लिख देती है हार।
उँगली की स्याही की होती, बड़ी बेरहम मार।।
अच्छे-अच्छे तीस मार खाँ, हाथ जोड़ते आते।
तरह-तरह की बातें करके, वादों की भरमार।।
वादे, नारे, जाति-धर्म सब, धरे हुए रह जाते।
पाँच साल के किये धरे का, पल भर में निपटार।।
●अशोक वशिष्ठ