Home आँगनधर्म-कर्म महाराष्ट्र के 55वें निरंकारी संत समागम का सफलतापूर्वक समापन

महाराष्ट्र के 55वें निरंकारी संत समागम का सफलतापूर्वक समापन

by zadmin

प्रभु की इच्छा को सर्वोपरि मानना ही शाश्वत आनंद की प्राप्ति

– सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज

      मुंबई:: ‘‘शाश्वत आनंद की चरम अवस्था को निरंतर कायम रखने के लिए प्रभु इच्छा को सर्वोपरि मानना होगा तभी भक्तिमार्ग पर चलते हुए आनंद की अवस्था को प्राप्त किया जा सकता है।‘‘यह विचार  सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने  13 फरवरी, को महाराष्ट्र के 55वें वार्षिक निरंकारी संत समागम के समापन पर  व्यक्त किए।

      सतगुरु माता जी के आशीर्वाद के साथ ही इस तीन दिवसीय संत समागम का सफलतापूर्वक समापन हुआ। समागम का सीधा प्रसारण मुंबई के चेंबूर  स्थित संत निरंकारी सत्संग भवन से मिशन की वेबसाइट एवं साधना टी.वी. चैनल पर किया गया जिसका आनन्द विश्व भर के लाखों श्रद्धालु भक्तों ने प्राप्त किया।

      सत्गुरू माता जी ने आनंद की अवस्था पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जब हम इस निरंकार प्रभु परमात्मा से जुड़ जाते है तब भक्ति का एक ऐसा रंग हम पर चढ़ता है कि सदैव ही आनंद की अनुभूति प्राप्त होती है। इस आनंद में भक्त इस प्रकार से तल्लीन रहता है कि फिर किसी के बुरे शब्दों या व्यवहार का उस पर कोई प्रभाव ही नहीं पड़ता क्योंकि वह भक्ति द्वारा आनंद की अवस्था को प्राप्त कर चुका होता है।

      एक रस रहने की अवस्था जीवन में तभी संभव होती है जब हम इस निरंकार से पूर्णतः जुड़ जाते हैं। एक लोकोक्ति के माध्यम द्वारा जीवन की परिस्थिति का वर्णन करते हुए सत्गुरू माता जी ने कहा कि दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करें न कोई अर्थात् दुख की स्थिति में तो सभी ईश्वर का स्मरण करते है किन्तु सुख में वह शुकराने का भाव प्रकट करना भूल जाते हैं। सुख एवं दुख तो जीवन के दो महत्वपूर्ण पहलू हैं जिनका जीवन में आना निश्चित है किन्तु भक्त जब भक्ति के रंग मे होता है तब हर पल आनंद का अनुभव करते हुए इस दातार की रज़ा में रहकर एक सकारात्मक दृष्टिकोण को अपना लेता है। फिर दुख की स्थिति आने पर भी वह दुखी नहीं होता।

       इसलिए दृढ़ विश्वासी संतों का संग एवं सेवा, सुमिरन, सत्संग का आधार लेते हुए  प्रतिपल मन से इस निरंकार प्रभु के साथ जुड़ जाना ही भक्ति है जिससे कि आनंद की अवस्था को प्राप्त किया जा सकता है।

 समागम के तीसरे दिन का मुख्य आकर्षण ‘बहुभाषी कवि सम्मेलन’ रहा जिसका शीर्षक – ‘श्रद्धा भक्ति विश्वास रहे, मन में आनंद का वास रहे’ था। इस विषय पर मराठी, हिंदी, पंजाबी, कोंकणी, अहिराणी, भोजपुरी एवं गुजराती आदि भाषाओं में कुल 18 कवियों ने कविताओं के माध्यम से  अपनी भावनाओं को व्यक्त किया।

      इसके अतिरिक्त समागम के तीनों दिन विभिन्न भाषाओं में वक्ताओं द्वारा अपने विचारों का व्याख्यान, गीत, भजन, कविता आदि विधाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया गया जिसमे अनेकता में एकता का सुंदर दृश्य एवं वसुधैव कुटुम्बकम की अनूठी छवि दर्शायी गयी।

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