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खरी-खरी–अशोक वशिष्ठ

by zadmin
vashishth

खरी-खरी
खरी-खरी कहते हुए, होना मत भयभीत।

अंत समय में खरे की, ही होती है जीत।।

चापलूस की बात का, करो नहीं विश्वास।

 बात खरी पहचानिए , रखें उसी से प्रीत।।

ऊँचे सुर में झूठ का, पीट रहे जो ढोल।

फटे ढोल संग कब तलक, गा पायेंगे गीत।। 
अशोक वशिष्ठ 

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