नीलाभ वर्मा
एकलव्य ने कैसे केवल गुरुद्रोण की मूर्ति बना कर स्वयं श्रम कर शिक्षा प्राप्त की ये सभी जानते हैं। हम इस बात से भी अवगत हैं कि किस प्रकार उसने गुरु दक्षिणा के रूप में अपने दाएं हाथ का अंगूठा काट कर दे दिया। बस इसके आलावा एकलव्य की कोई विशेष जानकारी हमें मूल महाभारत में नहीं मिलती है। किन्तु भागवत पुराण में उसके बाद के जीवन के विषय में कुछ वर्णन है।
भागवत पुराण के अनुसार आगे चल कर एकलव्य अपने पिता हिरण्यधनु की मृत्यु के पश्चात श्रृंगवेरपुर का राजा बना। उसने निषादों को संगठित किया और एक अति शक्तिशाली सेना बनाई। बाद में उसका विवाह सुनीता नामक कन्या से हुआ।
अंगूठा कट जाने के बाद भी उसकी धनुर्विद्या अद्भुत थी। उसने अंगूठे के बिना ही केवल तर्जनी और मध्यमा अंगुली से धनुष चलाने की कला का अविष्कार किया। आपको जानकर हैरानी होगी कि आज के आधुनिक युग में सभी तीरंदाज भी धनुष चलाने में अंगूठे का नहीं, बल्कि उन्ही दो अँगुलियों का उपयोग करते हैं। तो एक प्रकार से एकलव्य को आधुनिक धनुर्विद्या का जनक माना जा सकता है।
एकलव्य अपने राज्य की सीमा के विस्तार में जुट गया। उसके पिता जरासंध के ध्वज के नीचे शासन करते थे। एकलव्य भी अपने पिता का अनुसरण करते हुए, ये जानते हुए भी कि जरासंध पापी है, जरासंध का सहयोगी बन गया। जरासंध ने श्रीकृष्ण की अनुपस्थिति में जो मथुरा पर 17 बार आक्रमण किया, एकलव्य उन सबमें उसके साथ था। अपनी अद्भुत धनुर्विद्या से उसने मथुरा की सेना का बहुत अहित किया।
जब जरासंध ने मथुरा पर 18वीं और अंतिम बार आक्रमण किया तब भी एकलव्य उसके साथ था। उस युद्ध में जब श्रीकृष्ण ने उसे केवल दो अँगुलियों से अद्भुत निपुणता से बाण चलाते देखा तो वो हैरान रह गए। वे समझ गए कि आगे चल कर एकलव्य धर्म स्थापना के मार्ग में अवरोध बन सकता है, इसीलिए उन्होंने उसके वध का निश्चय किया। उन्होंने एकलव्य को युद्ध के लिए ललकारा और एक भारी शिला से उस पर प्रहार किया। उस प्रहार से वहीं युद्धक्षेत्र में ही एकलव्य वीरगति को प्राप्त हो गया।
एकलव्य के मरने के बाद उसका पुत्र केतुमान निषादों का राजा बना और उसने युधिष्ठिर के बजाय दुर्योधन को अपनी सेवाएं देना उचित समझा। महाभारत के युद्ध में भी उसने कौरवों की ओर से युद्ध किया और अंततः भीम के हाथों वीरगति को प्राप्त हुआ।
महाभारत के कुछ संस्करणों में ऐसा कहा गया है कि एकलव्य युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में भी आया था किन्तु मूल व्यास महाभारत में ऐसा कोई वर्णन नहीं है। एक जगह श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि “तुम्हारे प्राणों की रक्षा के लिए मैंने क्या क्या नहीं किया? घटोत्कच के हाथों कर्ण की शक्ति व्यर्थ की, कर्ण का निःशस्त्र वध करवाया, और तो और स्वयं एकलव्य का वध भी कर दिया।”एकलव्य निःसंदेह महाभारत के सबसे रोचक पात्रों में से एक है किन्तु दुःखद ये है कि उस जैसा योद्धा महाभारत तक जीवित ही नहीं बचा।