Home विविधासाहित्य ●खरी-खरी..●अशोक वशिष्ठ

●खरी-खरी..●अशोक वशिष्ठ

by zadmin
vashishth

●खरी-खरी
जीते को सिर पर बैठाते हमने देखा है।

धन दौलत से उसे अघाते हमने देखा है।।

कुछ दिन तक छाया रहता है वह अख़बारों में।

धीरे-धीरे गुम हो जाते हमने देखा है।।

जो जिसका अधिकार उसे वह तो देना ही होगा।

लेकिन प्रतिभा को घुट जाते हमने देखा है।।
●अशोक वशिष्ठ 

You may also like

Leave a Comment