●खरी-खरी
चमचम चमके बिजुरिया, झमझम बरसे मेह।
मनवा पपिहा बन गया, हुई कोकिला देह।।
बाग़-बग़ीचा खिल उठे, आयी सुखद बहार।
भंवरों के मन भा गया, कलियों का शृंगार।।
बरखा की बूँदें बनीं, जीवन का अनुवाद ।
हरे-भरे पत्ते करें , आपस में संवाद ।।
●अशोक वशिष्ठ
●खरी-खरी
चमचम चमके बिजुरिया, झमझम बरसे मेह।
मनवा पपिहा बन गया, हुई कोकिला देह।।
बाग़-बग़ीचा खिल उठे, आयी सुखद बहार।
भंवरों के मन भा गया, कलियों का शृंगार।।
बरखा की बूँदें बनीं, जीवन का अनुवाद ।
हरे-भरे पत्ते करें , आपस में संवाद ।।
●अशोक वशिष्ठ