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कारगिल विजय दिवस:झुंझुनू के शहीदों ने लिखी है शौर्यगाथा

by zadmin

झुंझुनू के शहीदों ने लिखी है शौर्यगाथा

रमेश सर्राफ धमोरा

शूरां निपजे झुंझुनू, लिया कफन का साथ

रणभूमि का लाडला, प्राण हथेली हाथ

उक्त कहावत को चरितार्थ किया है झुंझुनू जिले के वीर जवानो ने। इस वीर भूमि के रणबांकुरों ने जहां स्वतंत्रता पूर्व के आन्दोलनो में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया वहीं स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की लड़ाइयों में भी इस धरती की माटी में जन्मे सेनानियों ने हंसते हुये अपने प्राणे की आहूतियां दी है। यहां की धरती ने सदियों से जन्म लेते रहे सपूतों के दिलों में देशभक्ति की भावना को प्रवाहित किया हैं।

शहादत देना राजस्थान के लागों की परम्परा रही है। यहां के गांवो में लोक देवताओं की तरह पूजे जाने वाले शहीदों के स्मारक इस परम्परा के प्रतीक हैं। 22 साल पहले कारगिल युद्ध तो हमने जीत लिया। लेकिन शहीदों के परिवारों के सामने कई समस्यायें अभी भी मुंह बायें खड़े हैं। इस जिले के वीरों ने बहादुरी का जो इतिहास रचा है उसी का परिणाम है कि भारतीय सैन्य बल में उच्च पदों पर सम्पूर्ण राजस्थान की ओर से झुंझुनू जिले का ही वर्चस्व रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे यहां की धरती को यह वरदान प्राप्त हो कि इस पर राष्ट्रभक्ति के के लिये मर मिटने वाले लाडेसर ही जन्म लेते हैं। 1948 में कश्मीर पर कबायली हमला हो या 1962 का भारत चीन युद्ध। चाहे 1965 व 1971 का भारत-पाक युद्ध। यहां के वीरों ने मातृभमि की रक्षा हेतू सदैव अपना जीवन बलिदान किया हैं। सेना के तीनो अंगो की आन ,बान,शान के लिये यहाँ के नौजवान सैनिकों के उत्सर्ग को देश कभी भुला नही सकता हैं।

इस क्षेत्र के सैनिकों ने भारतीय सेना में रहकर विभिन्न युद्धों में बहादुरी एवं शौर्य की बदौलत जो वीरता पदक प्राप्त किये हैं। वे किसी भी एक जिले के लिए प्रतिष्ठा एवं गौरव का विषय हो सकता हैं। सीमा युद्ध के अलावा जिले के बहादुर सैनिकों ने देश मे आंतरिक शान्ति स्थापित करने में भी सदैव विशेष भूमिका निभाई हैं। सीमा संघर्ष एवं नागा होस्टीलीटीज हो या आपरेशन ब्लूस्टार या श्रीलंका सरकार की मदद हेतु किये गये आपरेशन पवन अथवा कश्मीर में चलाया गया आतंकवादी अभियान रक्षक या कारगिल युद्ध। सभी अभियान में यहां के सैनिको ने शहादत देकर देश में जिले का मान बढ़ाया हैं।

प्रारम्भ से ही झुंझुनू जिले में सेना में भर्ती होने की परम्परा रही हैं। पहले यहां के गांवो में प्रायः हर घर में सैनिक होता था। सेना के प्रति यहां के लगाव के कारण अंग्रेजों ने यहां एक सैनिक छावनी की स्थापना कर ‘शेखावाटी ब्रिगेड ‘का गठन किया था। जिले के वीर जवानों को उनके शौर्यपूर्ण कारनामों के लिये समय-समय पर भारत सरकार द्वारा विभिन्न अलंकरणों से नवाजा जाता रहा हैं। अब तक इस जिले के कुल 117 सैनिकों को वीरता पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। जो पूरे देश में किसी एक जिले के सर्वाधिक हैं।

भारतीय सेना में योगदान के लिये झुंझुनू जिले का देश में अव्वल नम्बर हैं। वर्तमान में इस जिले के 29 हजार जवान सेना में कार्यरत हैं। वहीं 45 हजार भूतपूर्व सैनिक व अर्द्ध सैनिक बलों के जवान हैं। आजादी के बाद भारतीय सेना की और से राष्ट्र की सीमा की रक्षा करते हुए यहां के 468 जवान शहीद हो चुके हैं। जो पूरे देश में किसी एक जिले से सर्वाधिक है। कारगिल युद्ध के दौरान पूरे देश में 527 जवान शहीद हुये थे जिनमें अकेले इस जिले के 19 सैनिक शहीद हुए थे। जो पूरे देश में किसी एक जिले से शहादत देने वालों में सर्वाधिक जवान थे।

यहां के जवानो ने सेना के सर्वोच्च पदों तक पहुंच कर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। जिले के एडमिरल विजय सिंह शेखावत भारतीय नौसेना में सेना अध्यक्ष रह चुकें हैं। वहीं स्व. कुन्दन सिंह शेखावत थल सेना में लेफ्टिनेंट जनरल व भारत सरकार के रक्षा सचिव रह चुके हैं। जे.पी.नेहरा, सत्यपाल कटेवा सेना में लेफ्टिनेंट जनरल पद से सेवानिवृत्त हुये हैं। जिले के रघुनाथपुर गांव के दो भाई के के रेपस्वाल व बी के रेपस्वाल अभी सेना में लेफ्टिनेंट जनरल पद पर कार्यरत हैं। इसके अलावा यहां के काफी लोग सेना में मेजर जनरल, ब्रिगेडियर, कर्नल,मेजर सहित अन्य महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत है। देश में झुंझुनू एकमात्र ऐसा जिला हैं जहां सैनिक छावनी नहीं होने के उपरान्त भी गत पचास वर्षो से अधिक समय से सेना भर्ती कार्यालय कार्यरत है। जिससे यहां के काफी युवकों को सेना में भर्ती होने का मौका मिल पाता है।

यहां के हवलदार मेजर पीरूसिंह शेखावत को 1948 के कश्मीर में कबायली युद्ध में अद्भुत शोर्य का प्रदर्शन करते हुये शहादत देने पर वीरता के लिये देश का सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया जा चुका है। परमवीर चक्र पाने वाले पीरूसिंह शेखावत राजस्थान के पहले सैनिक थे। यहां के सैनिकों ने द्वितीय विश्व युद्ध में भी बढ़चढ़ कर भाग लिया था। आज भी जिले में द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लेने वाले कई पूर्व सैनिकों या उनकी विधवाओं को सरकार से पेंशन मिल रही है।

जिले में इतने अधिक लोगों का सेना से जुड़ाव होने के उपरान्त भी सरकार द्वारा सैनिक परिवारों की बेहतरी व सुविधा उपलब्ध करवाने के लिये कुछ भी नहीं किया गया है। कारगिल युद्ध के समय सरकार द्वारा घोषित पैकेज में यह बात भी शामिल थी कि हर शहीद के नाम पर उनके गांव में किसी स्कूल का नामकरण किया जायेगा। मगर जिले में कई शहीदों के नाम पर अब तक सरकार ने स्कूलों का नामकरण कई वर्ष बीत जाने के बाद भी नहीं किया है। कई स्कूलों का नामकरण किया भी गया मगर उन स्कूलों को बाद में बंद कर दिया गया।

झुंझुनू जिले के सीथल गांव के शहीद हवलदार मनीराम महला कारगिल में दुश्मनों से लोहा लेते हुए तीन जुलाई 1999 को शहीद हो गए थे। शहीद वीरांगना मुन्नी देवी ने बताया कि जब उनके पति शहीद हुए थे। तो उन्हें बताया गया था कि उनके बेटों में से एक को सरकारी नौकरी मिलेगी। लेकिन सरकार बदली तो तो नियम भी बदल दिया गया। अब सरकारी नौकरी के लिए वे दो दशक से चक्कर लगा रही है। इसके अलावा गांव की जिस स्कूल का नामकरण उनके पति के नाम से किया गया था। वो भी मर्ज कर दी गई है। ऐसे में उनके सम्मान को ठेस पहुंची है।

जिले के बासमाना गांव का हवासिंह कारगिल युद्ध में शहीद हो गया। शहीद का परिवार आज भी अपने सम्मान की लड़ाई लड़ रहा है और सरकारी सिस्टम के आगे ना केवल लाचार है, बल्कि अब हारकर अपने घर भी बैठ गया है। शहीद की वीरांगना मनोज देवी एमए बीएड तक पढ़ी होने के बाद भी उसे नौकरी नहीं मिली। परिवार का जीवन यापन करने के लिए जो पेट्रोल पंप मिला। वो भी कुछ साल पहले कंपनी ने धोखे से वापिस ले लिया और अब केवल दफ्तरों के चक्कर लगाने के अलावा परिवार के पास कुछ नहीं है। परिजन बताते है कि उन्होंने सरकारी सिस्टम से हारकर बैठ गए है।

झुंझुनू जिले के मैनपुरा गांव के शहीद रणवीर सिंह महज 25 साल की उम्र में कारगिल युद्ध में देश पर अपनी जान न्योछावर कर दी थी। शहादत के इतने साल बाद भी उनका परिवार भी सरकार से नौकरी का इंतजार कर रहा है। कई बार आवेदन करने के बाद भी जयपुर से फाइल लौट आती है। आज भी शहीद वीरांगना को सरकार से अपनी अनुकंपात्मक नियुक्ति का इंतजार है।

दर्जनों कारगिल शहीदों के परिवारों को मिलने वाली सरकारी नौकरियां लाल फीताशाही में दब कर रह गई है। कुछेक को मिली और कुछेक रह गए। लेकिन सरकार आई और गई, नेता आए और गए। आश्वासन सभी नहीं दिए। लेकिन उनके दुखों को मरहम लगाने का काम किसी ने नहीं किया।

रमेश सर्राफ धमोरा

लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार है।

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