●खरी-खरी
अति भारी बारिश हुई , ढह गये की मकान।
सोते-सोते बन गये , वे मकान शमशान ।।
वे मकान शमशान, भूस्खलन बना मुसीबत।
आसमान से जैसे , आयी कोई आफत ।।
प्रकृति का तांडव , पड़ता मानव पर भारी।
सूखा पड़ती कहीं , कहीं बारिश अति भारी।।
☆ अशोक वशिष्ठ
●खरी-खरी
अति भारी बारिश हुई , ढह गये की मकान।
सोते-सोते बन गये , वे मकान शमशान ।।
वे मकान शमशान, भूस्खलन बना मुसीबत।
आसमान से जैसे , आयी कोई आफत ।।
प्रकृति का तांडव , पड़ता मानव पर भारी।
सूखा पड़ती कहीं , कहीं बारिश अति भारी।।
☆ अशोक वशिष्ठ