सखी री, कैसे करूं श्रृंगार ?
रिमझिम सावन आगि लगाए,आए नहीं भरतार,
सखी री, कैसे करूं श्रृंगार?
सूनी-सूनी बखरी लागे,सूना लागे अंगना
बिछियां बिच्छू बनिके काटें,ताना मारे कंगना
सांप सरीखा छाती पर,लोटे सोने का हार
सखी री, कैसे करूं श्रृंगार?
सांप-छछुंदर-सी गति मोरी,कासे कहूं हिय बतिया
हॅंसी उड़इहैं सास-ननद,जउ जनिहैं मोर हलतिया
यहिं वियोग का योग न कोई, नहीं कोई उपचार
सखी री, कैसे करूं श्रृंगार?
पोर-पोर टूटत है मोरा,तन लेवे अंगड़ाई
काम करूं कैसे कोई,जब काम बना हरजाई
बदला मौसम,बदला लेवे,जीना है दुश्वार
सखी री, कैसे करूं श्रृंगार?
साजन के बिन सेज निगोड़ी,नागिन जैसी लागे
कारी कोयल कानन से हिय में गोली-सी दागे
शीतल मंद हवा भी लागे,अब तो ज्यों अंगार
सखी री, कैसे करूं श्रृंगार?
सुरेश मिश्र