एक तरफ सरकार को डेटा संरक्षण कानून को पारित कर उसे समाज की वास्तविकताओं के अनुसार लागू करना चाहिए, वहीं दूसरी तरफ कंपनियों को भी विश्वसनीय निजता प्रथाओं के मद्दे नज़र रखते हुए ज़रूरत से अनुसार डेटा इकट्ठा करना चाहिए।साथ ही साथ उपयोगकर्ताओं को अपनी निजता के प्रति जागरूक हो कर डिजिटल दुनिया में कदम उठाने चाहिए. हाल ही में व्हाट्सऐप की नई निजता नीति काफी चर्चा में रही है। इस नई नीति के माध्यम से निजता, व्यापार और सुरक्षा के संगम को समझते है ।पहले तो यह समझना ज़रूरी है की हमारी निजी चैट एंडटू एंड एन्क्रिप्शन टेक्नोलॉजी के माध्यम से सुरक्षित है । आपके फ़ोन मे ‘सेंड’ बटन को छूते ही आपका सन्देश निरर्थक अक्षरांकीय सन्देश में बदल जाता है जिसे केवल आपके दोस्त के फ़ोन में छुपी डेक्रिप्शन चाभी के माध्यम से ही पढ़ा जा सकता है । मतलब सन्देश भेजने और प्राप्त करने वाले के आलावा कोई तीसरा व्यक्ति फिर चाहे वो कंपनी हो, सरकार हो, या कोई हैकर, कोई भी उस सन्देश को नही पढ़ सकता। वो सन्देश एन्ड टू एन्ड एन्क्रिप्शन के कवच मे सुरक्षित है ।
आज सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर हर कोई पत्रकार, सम्पादक बन रहा है तो कोई प्रसिद्धि प्राप्त करने के लिए इनका इस्तेमाल कर रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस दौर में संसार सिकुड़ रहा है और हमारी निजता खत्म होती जा रही है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म व्हाट्सऐप की प्राइवेसी पालिसी को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। जब से सरकार ने नया नियामक कानून बनाया है और सभी सोशल मीडिया मंचों को एक तय अवधि में उनका पालन करने को कहा तो सोशल मीडिया प्लेटफार्मों ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला करार देकर इसे मानने से इंकार कर दिया। हालांकि फेसबुक और गूगल ने तो आनाकानी के बावजूद उसे मान लिया गया लेकिन व्हाट्सएप और ट्विटर अभी भी अडियल रुख अपनाए हुए हैं। व्हाट्सएप ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया है कि जब तक डाटा संरक्षण विधेयक प्रभाव में नहीं आता तब तक वह यूजर्स को नई निजता नीति अपनाने के लिए बाध्य नहीं करेगा और उसने अपनी नीति पर अभी रोक लगा दी है। फिलहाल यूजर्स को इससे राहत मिली है लेकिन व्हाट्सएप की निजता नीति अस्तित्व में है और भविष्य में इसे फिर से लाया जा सकता है। कम्पनी का यह भी कहना है कि नई निजता नीति अपनाने वाले यूजर्स के लिए उपयोग के दायरे को सीिमत नहीं किया जा सकता। पहले चिंता यह थी कि नई निजता नीति नहीं मानने वाले यूजर्स को कुछ सुविधाओं से वंचित किया जा सकता है। पहले सोशल मीडिया प्लेटफार्मों ने अपनी सेवाएं मुफ्त में दीं, जब लोगों ने इनका भरपूर इस्तेमाल किया तो यह प्लेटफार्म व्यापार करने लगे। लोगों को इस बात का अहसास ही नहीं हुआ कि उन्हें कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। व्हाट्सएप की तरफ से यह भी कहा गया कि डाटा संरक्षण विधेयक आने पर उसे अपनी नीति के अनुसार काम करने दिया जाए वर्ना वे अपनी दुकान बंद करके चले जाएंगे। इसका अर्थ यही है कि निजता की रक्षा की लड़ाई लम्बी चलने वाली है। दिल्ली हाईकोर्ट फेसबुक और उसकी सहायक कम्पनी व्हाट्सएप की अपीलों पर सुनवाई कर रही है, जो व्हाट्सएप की नई निजता नीति के मामले में जांच के भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के आदेश पर रोक लगाने से इंकार के एकल पीठ के आदेश के विरुद्ध दाखिल की गई है।
यह तथ्य पहले ही उजागर हो चुका है कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म संचालन करने वाली कम्पनियां लोगों की व्यक्तिगत जानकारियां इकट्ठी करती हैं और फिर उनका सौदा करती हैं। डाटा बेचा जाता है। पिछले कुछ वर्षों से चुनावों के दौरान सोशल मीडिया प्लेटफार्मों ने जनमत तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन प्लेटफार्मों की ताकत काफी बढ़ चुकी है और वे सरकार को चुनौती तक देने से परहेज नहीं कर रहे। यह कम्पनियां लोगों का मानस बनाने के लिए भी काम करती हैं, वे लोगों की पसंद भी तय करती नजर आ रही हैं। लोग मानसिक रूप से इनके गुलाम हो चुके हैं। व्हाट्सएप ने नई निजता नीति के तहत बहुत ज्यादा निजी जानकारियां मांगी थीं। नीति में यह शर्त भी थी कि वह यह जानकारियां फेसबुक और अन्य कम्पनियों से साझा करेगा। भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने व्हाट्सएप की नई प्राइवेसी पॉलिसी की जांच करने का आदेश दिया तो कम्पनी को तकलीफ होने लगी। आयोग ने यह भी कहा कि निजता नीति को अपडेट करने के नाम पर व्हाट्सएप ने अपने शोषक और विभेदकारी व्यवहार के जरिये प्रथम दृष्ट्या प्रतिस्पर्धा कानून के प्रावधानों का उल्लंघन किया है। डाटा साझा करने का मकसद यूजर्स का आर्थिक दोहन करना भी है। सोशल मीडिया कम्पनियां इस कोशिश में थी कि सरकार द्वारा डाटा संरक्षण विधेयक पारित होने से पहले ही वे अपनी व्यावसायिक सुरक्षा का इंतजाम कर लें। अगर इन कम्पनियों के यूजर्स से पहले ही निजता नीति को स्वीकार कर लिया तो कानून निरर्थक हो जाएगा। आज के समय में निजता की रक्षा बहुत जरूरी है और किसी भी कम्पनी या संस्थान को छूट नहीं मिलनी चाहिए कि वह किसी न किसी की निजी सूचनाओं का उपयोग करें। यूजर्स अपने व्यक्तिगत आंकड़ों का मालिक है। उसके पास यह जानने का पूरा अधिकार है कि व्हाट्सएप द्वारा सूचनाएं साझा करने का क्या मकसद है। भारत का बाजार बहुत विशाल है, हम अपना डाटा आसानी से किसी के हाथ लगने नहीं दे सकते। सोशल मीडिया प्लेटफार्म बेशक अभिव्यक्ति की आजादी का पोषण करते हैं, परन्तु वे निरंकुश कतई नहीं हो सकते। यदि अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में कम्पनियां व्यावसायिक हितों को साधने लगें तो उसे उचित नहीं कहा जा सकता। निजता विवाद का अंत होना ही चाहिए। हमें वैसी ही निजता सुरक्षा मिलनी चाहिए जैसे अमेरिका और यूरोपीय देशों के लोगों को हासिल है।
अशोक भाटिया,
स्वतंत्र पत्रकार