केंद्रीय मंत्रिपरिषद के विस्तार की प्रतीक्षा पूरी हुई। इस पहले बड़े विस्तार और साथ ही फेरबदल से यही स्पष्ट हुआ कि नए मंत्रियों के चयन में योग्यता एवं अनुभव को प्राथमिकता देने के साथ ही क्षेत्रीय और सामाजिक समीकरणों का भी विशेष ध्यान रखा गया। लोकतंत्र में ऐसा करना आवश्यक होता है। केंद्रीय मंत्रिपरिषद के विस्तार के साथ प्रधानमंत्री की टीम कहीं ज्यादा व्यापक आधार वाली और पहले से अधिक सक्षम दिखने लगी है। चूंकि मंत्रिपरिषद में सहयोगी दलों की भागीदारी के साथ ही युवा चेहरों का प्रतिनिधित्व बढ़ गया है इसलिए उसकी औसत आयु पहले से कम दिखने लगी है। खास बात यह भी है कि मंत्रिपरिषद में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। इसके साथ ही वंचित एवं पिछड़े तबकों की भी हिस्सेदारी बढ़ी है। इसका अर्थ है कि प्रधानमंत्री सोशल इंजीनिर्यंरग पर न केवल काम कर रहे हैं, बल्कि उसे बल भी प्रदान कर रहे हैं। यह उनके लिए अचरज का विषय हो सकता है, जो अभी भी भाजपा को पुराने चश्मे से देखने के अभ्यस्त हैं अथवा सामाजिक न्याय के नाम पर जातियों की गोलबंदी को ही सही मानते हैं।
मोदी कैबिनेट के विस्तार के द्वारा मिशन यूपी-2022 पूरा किए जाने की बात की जाए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो चेहरे अपनी ‘टीम’ के लिए चुने, वह यूपी की चुनावी पिच पर मजबूती के साथ ‘बैटिंग’ कर सकते हैं। यही वजह है कि मोदी कैबिनेट में किन्हीं बड़े नामों के बजाय सामाजिक समीकरणों को प्राथमिकता दी गई है। तीन पिछड़े, तीन दलित और एक ब्राह्मण बिरादरी के मंत्री के साथ ही बीजेपी ने क्षेत्रीय संतुलन भी साधा है। नए पुराने चेहरों को जोड़ लें तो पूर्वांचल से 5, अवध से 4, पश्चिम यूपी से 3, बुंदलेखंड से 2 और रुहेलखंड से एक चेहरा टीम मोदी का हिस्सा बना है।
गौरतलब है कि यूपी के विधानसभा चुनाव के नतीजे जातीय और सामाजिक समीकरणों से सधते हैं। सवर्णों के साथ ही गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलितों को अपने कोर वोट बैंक में बदलने के अभियान में बीजेपी 2014 से ही लगी हुई है। उसे इसका काफी फायदा भी हुआ है। मोदी मंत्रिमंडल विस्तार में यूपी से आए नए चेहरों में दो कुर्मी बिरादरी से हैं। अनुप्रिया और उनके दल का पूर्वांचल के कई जिलों में प्रभाव है। इस बिरादरी से आने वाले संतोष गंगवार को हटाया गया तो पंकज चौधरी को जोड़कर उसकी भरपाई भी कर दी गई। बदायूं के रहने वाले बीएल वर्मा लोध बिरादरी से आते हैं। मध्य यूपी के कई जिलों में इस बिरादरी के वोट निर्णायक हैं। तीन दलित मंत्रियों में कौशल किशोर पासी, भानुप्रताप वर्मा कोरी और एसपी सिंह बघेल धनगर बिरादरी से आते हैं। 2014 से ही गैर-जाटवों के वोट बीएसपी से छिटक कर बीजेपी में जुड़े हैं। सांसद एसपी सिंह बघेल बीजेपी के पिछड़ा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। अति पिछड़ों में पाल बिरादरी में भी उनका प्रभाव माना जाता है। हालांकि, इस समय वह आगरा की सुरक्षित सीट से सांसद हैं। अजय मिश्र टेनी अवध से आते हैं। इस बेल्ट से केंद्रीय मंत्रिमंडल में ब्राह्मणों की पहले कोई भागीदारी नहीं थी।
यह कहना गलत नहीं होगा कि प्रधानमंत्री मोदी ने हमेशा की तरह इस बार भी अपनी कैबिनेट का विस्तार अपने हिसाब से करके सबको चौंका दिया है, जिन बड़े नामों के मोदी मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने का ‘शोर’ काफी समय से सुनाई दे रहा था, वह ‘शोर’ ही साबित हुआ और बाजी कोई दूसरा मार ले गया। वरूण गांधी से लेकर रीता बहुगुणा जोशी जैसे चेहरे चर्चाओं व कयासों तक ही सिमट गए। दिल्ली में आस लगाए यूपी में भाजपा के सहयोगी दलों को भी झटका लगा है। तल्ख बयान व चेतावनी जारी करने वाली निषाद पार्टी खाली हाथ रह गई। वहीं अपना दल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल को भी कैबिनेट की जगह राज्यमंत्री से ही संतोष करना पड़ा है। मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में कैबिनेट मंत्री रहीं मेनका गांधी को 2019 में मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली थी। ऐसे में विस्तार में उनके बेटे व पीलीभीत से सांसद वरूण गांधी के समायोजन की चर्चा तेज थी। प्रयागराज की सांसद रीता बहुगुणा जोशी के बड़े नाम होने के साथ ही ब्राह्मण चेहरे के तौर पर शामिल किए जाने के कयास थे। हालांकि, उस बेल्ट से महेंद्र नाथ पांडेय पहले से ही केंद्रीय मंत्री हैं। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि 2014 में मोदी युग आने के बाद से भाजपा में बाहरियों की भागीदारी जमकर बढ़ी है। दूसरे दलों से आए बड़े नामों के बीच कार्यकर्ताओं की चिंता को भी संगठन ने नजदीक से महसूस किया है। यही वजह है कि जब ईनाम देने का मौका आया तो साफ संदेश दिया गया कि अपनों का विस्तार हमारी पहली प्राथमिकता है।
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा की नजर अलग-अलग क्षेत्रों में प्रभावी चेहरों को भी तैयार करने पर है। मोदी कैबिनेट के विस्तार में संगठन के खांटी चेहरों को जगह देना इसका साफ संकेत है। मसलन कुर्मियों में बड़ी पैठ रखने वाली अनुप्रिया पटेल को मंत्री बनाने के साथ ही पूर्वांचल से उसी बिरादारी से पंकज चौधरी को मंत्री बनाकर उनका कद बढ़ाया गया है। पंकज पार्टी के तीन दशक से अधिक पुराने कार्यकर्ता हैं। स्वास्थ्य कारणों से पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की घटती सक्रियता के बीच उनके करीबी लोध बिरादारी के बीएल वर्मा को लगातार मिल रहा प्रमोशन भी इसी तैयारी का हिस्सा माना जा रहा है। जिससे मध्य यूपी में सामाजिक समीकरण दुरुस्त रह सके। भाजपा में प्रदेश स्तर पर प्रभावी दलित चेहरे को लेकर मंथन चलता ही रहा है। दलितों के मुद्दे पर मुखर रहे कौशल किशोर का लगातार प्रमोशन इस गैप को भरने की कवायद बताई जा रही है। कौशल किशोर को तब मंत्री बनाया गया है जबकि अपनी पुत्रवधू से विवाद के चलते उनकी काफी फजीहत होती दिख रही थी। कौशल को यह सब अनदेखा करके इस लिए तवज्जो दी गई क्योंकि उनकी अपने समाज में पैठ भी अच्छी है और वह दो दशक से अधिक समय से जमीन पर काम भी कर रहे हैं।
अशोक भाटिया,
स्वतंत्र पत्रकार