केंद्र सरकार का दावा है कि साल 2021 के दिसंबर तक देश के सभी 100 करोड़ नौजवानों को कोविड-19 की वैक्सीन मिल जाएगी. यानी सभी 100 करोड़ लोगों का पूरी तरह टीकाकरण करने के लिए 200 करोड़ वैक्सीन की ज़रूरत सरकार दिसंबर तक पूरा करने का दावा कर रही है। साथ ही भारत के वैक्सीनेशन कार्यक्रम की रफ्तार को लेकर पीएम नरेंद्र मोदीने एक ट्वीट किया है. अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा, ‘भारत का टीकाकरण अभियान गति पकड़ रहा है, उन सभी को बधाई जो इसमें जुटे हैं. हमारी प्राथमिकता सभी के लिए वैक्सीन और सभी के लिए मुफ्त वैक्सीन को ले।यह कदम सराहनीय है कि केन्द्र सरकार ने देश के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष हाल ही में कोरोना टीकाकरण का जो ब्यौरा रखा है उसके अनुसार इस वर्ष के अन्त तक 200 करोड़ वैक्सीन उपलब्ध हो जायेगी जिससे 18 वर्ष से ऊपर के सभी 94 करोड़ लोगों के टीका लग जायेगा। इससे यह स्पष्ट है कि वैक्सीन उत्पादन व इसकी उपलब्धता का पक्का खाका केन्द्र ने तैयार कर लिया है। इससे यह भी भ्रम साफ होना चाहिए कि भारत के पास वैक्सीन की कमी का कोई डर है। केन्द्र सरकार ने देश की सबसे बड़ी अदालत में वचन दिया है कि 31 जुलाई तक 51.6 करोड़ वैक्सीन उपलब्ध हो जायेंगी जबकि शेष साल के अन्त तक प्राप्त हो जायेगी। यदि सरकार वैक्सीनों की सप्लाई इस गति से प्राप्त करने में सफल हो जाती है तो कोई कारण नहीं है कि भारत के प्रत्येक वयस्क नागरिक का चालू वर्ष के भीतर-भीतर टीकाकरण न हो सके। सरकार ने एक शपथ पत्र दाखिल कर सर्वोच्च न्यायालय को यह वचन दिया है। अभी तक 27 करोड़ के लगभग लोगों का टीकाकरण हो चुका है जिनमें से साढ़े पांच करोड़ को दो बार वैक्सीन लगी है। भारत की आबादी 139 करोड़ को देखते हुए ये आंकड़े कम लग सकते हैं मगर इसके साथ यह भी सत्य है कि सीमित वैक्सीन उत्पादन क्षमता को देखते हुए इन्हें कम करके भी नहीं आंका जा सकता।
भारत सरकार ने अब टीकाकरण का जो खाका सर्वोच्च न्यायालय के सामने रखा है उसके अनुसार अगस्त से दिसम्बर तक 135 करोड़ वैक्सीन इनकी पांच उत्पादक कम्पनियों से प्राप्त की जायेगी। इनमें 50 करोड़ कोविशील्ड, 40 करोड़ कोवैक्सीन, 30 करोड़ बायो ई., 10 करोड़ स्पूतनिक व 5 करोड़ जायडस कैडिला होंगी। इन आंकड़ों से तो लगता है कि भारत कोरोना की संभावित तीसरी लहर के आने से पहले अपने 75 प्रतिशत वयस्कों को वैक्सीन लगा देगा। वैज्ञानिकों का मत है कि अक्टूबर महीने में कोरोना की तीसरी लहर आ सकती है। दुनिया जानती है कि कोरोना का मुकाबला करने का एक ही तरीका है कि सभी नागरिकों को टीका लगाया जाये। बेशक यह कार्य हम और जल्दी तथा ज्यादा संजीदगी दिखाते हुए कर सकते थे, बशर्ते हमने वैक्सीन प्राप्त करने में देरी न की होती। मगर इसके साथ यह भी हमें समझना चाहिए कि कोरोना संक्रमण से दुनिया को छुटकारा दिलाने में भारत की महती भूमिका रही है।
हमारा देश ही एक मात्र ऐसा देश है जहाँ कोविशील्ड वैक्सीन का उत्पादन सर्वाधिक हो रहा है और उसके बाद कोवैक्सीन का उत्पादन भी अब गति पकड़ रहा है। दुनिया के अन्य देशों में वैक्सीन उत्पादन की क्षमता बहुत कम है। कोरोना की दूसरी लहर का मुकाबला करने के लिए भारत से ही अधिकतम वैक्सीनों का निर्यात हुआ परन्तु यह भी सत्य है कि भारत ने मानवीयता के आधार पर दुनिया के अन्य देशों की मदद की। भारत के मुकाबले इन देशों की आबादी बहुत कम है अतः भारत की सदाशयता की वजह से मानव जाति का कल्याण हुआ। बेशक शुरू में भारत की वैक्सीन नीति में बहुत खामियां थीं जो सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद दुरुस्त हुईं। मसलन 18 वर्ष से ऊपर 44 वर्ष तक के लोगों के वैक्सीन लगाने का जिम्मा राज्य सरकारों को दे दिया गया था और इसके लिए वैक्सीन खरीदने की जिम्मेदारी भी उन पर डाल दी गई थी, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने गैर तार्किक और बेहूदा करार दिया था। इसके बाद ही केन्द्र सरकार ने सभी वयस्कों के मुफ्त टीका लगाने की घोषणा की और वैक्सीन की घरेलू उत्पादन वृद्धि व खरीद नीति को सरल बनाया। अब कोविशील्ड व कोवैक्सीन बनाने वाली कम्पनियों को अपनी उत्पादन क्षमता में विस्तार करने की छूट इस प्रकार दी गई है कि भारत को कम से कम वैक्सीन आयात करने की जरूरत पड़े। इसके बावजूद सरकार अन्य विदेशी वैक्सीन कम्पनियों से भी बात कर रही है जिससे जरूरत पड़ने पर उनकी वैक्सीनों का इस्तेमाल भी भारत में हो सके।
भारत सरकार ने 25 प्रतिशत वैक्सीन खरीद का अधिकार निजी क्षेत्र के चिकित्सा तन्त्र को भी दिया है। हालांकि सरकार के इस फैसले की भी राजनैतिक क्षेत्रों में कड़ी आलोचना हुई है मगर भारत की आर्थिक परिस्थितियों को देखते हुए निजी क्षेत्र को इजाजत देने में कोई हर्ज भी नजर नहीं आता है। जिन लोगों की आर्थिक क्षमता कुछ धन खर्च करके वैक्सीन लगवाने की है उनके लिए यह सुविधा है, वैसे यह आवश्यक नहीं है, अगर धनाढ्य लोग भी सरकारी केन्द्रों पर मुफ्त वैक्सीन लगवाना चाहें तो उनका स्वागत है। यह समाजवादी नीति ही है, इसमें बहुत ज्यादा तर्क की गुंजाइश इसलिए नहीं बचती है क्योंकि आजादी के बाद यह देश हवाई जहाज में सफर करने वाले लोगों से मिट्टी का तेल प्रयोग करने वाली गरीब जनता को उसे सस्ती दर पर उपलब्ध कराने की कीमत वसूलता रहा है लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि सरकार ने कोरोना काल में फौज समेत सरकारी कर्मचारियों के मंहगाई भत्ते व अन्य कुछ मदों में कटौती करके साढ़े 37 हजार करोड़ की प्रप्ति की और वैक्सीन लगाने के लिए बजट में 36 हजार करोड़ का प्रावधान किया तो जनता को क्या दिया? लेकिन यह पिछले सौ साल का सबसे बड़ा संकट है इसलिए सरकार को कुछ मोहलत देनी होगी मगर इतनी भी नहीं कि लोगों के काम-धंधे चौपट हो जाने के बावजूद उन्हें किसी प्रकार की सीधी वित्तीय मदद भी न मिले परन्तु फिलहाल प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा करना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है और इसके लिए वैक्सीन ही अन्तिम औजार है।ये बड़ी चिंता की बात थी, क्योंकि नेचुरल के साथ टीकाजनित इम्युनिटी आने के लिए भी एक बड़ी आबादी को कम समय में टीका लगाने की दरकार होती है। इन तरीकों से जब हम संक्रमण की चेन तोड़ते हैं तभी हमारी आर्थिक गतिविधियां सुचारु रूप से चल पाती हैं। इसकी बड़ी वजह है कि तब हम लाकडाउन जैसे हथियार का सहारा लिए बिना ही संक्रमण की रफ्तार को थाम सकते हैं। लिहाजा हमें अपनी टीकाकरण नीति में सुधार की जरूरत महसूस हुई और हम कर भी रहे हैं । अतः वैक्सीन फर्स्ट। अब यह तो कहना ही पड़ेगा कि 2021 में सबका हो टीकाकरण तो कम से कम 2022 तो खुशनुमा होगा ।
अशोक भाटिया,
स्वतंत्र पत्रकार