●खरी-खरी
धीरे – धीरे हो रहे , गायब हंसी – मज़ाक।
वाणी ऐसी बोलते , करे कलेजा चाक।।
करे कलेजा चाक , घृणा का आलम छाया।
जो अपना है वह भी , लगने लगा पराया।।
मन में भरने लगे , द्वेष के ग़जब जखीरे ।
मानव अब शैतान , बन रहा धीरे – धीरे ।।
☆ अशोक वशिष्ठ