●खरी-खरी
मौसम भी होने लगा , है अब तो बेईमान।
कब क्या हो जाये यहाँ, किसको है यह ज्ञान।।
किसको है यह ज्ञान , ग़ज़ब है प्रभु की माया।
कहीं बरसता मेह , धूप होती कहीं छाया ।।
जैसे भी हो बस , हो जाये कोरोना कम ।
तभी समझिए होगा , जग में सुख का मौसम।।
● अशोक वशिष्ठ