खरी-खरी
कोरोना में बन गये , महानगर ज्यों जेल।
बंद पड़े घर में रहो , खेलो मन में खेल ।।
खेलो मन में खेल, कहीं मत आओ-जाओ।
उम्रकैद की तरह , घरों में समय बिताओ।।
बाहर निकलोगे तो , भी सावधान रहो ना ।
डर है कहीं न पीछे , लग जाए कोरोना ।।
●अशोक वशिष्ठ
खरी-खरी
कोरोना में बन गये , महानगर ज्यों जेल।
बंद पड़े घर में रहो , खेलो मन में खेल ।।
खेलो मन में खेल, कहीं मत आओ-जाओ।
उम्रकैद की तरह , घरों में समय बिताओ।।
बाहर निकलोगे तो , भी सावधान रहो ना ।
डर है कहीं न पीछे , लग जाए कोरोना ।।
●अशोक वशिष्ठ