निर्भय भारत से किसकी नींद हराम ?
महाभारत काल में लाक्षागृह का जिक्र आता है. इस लाक्षागृह की घटना का जिक्र करते हुए राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर रश्मिरथी में लिखते हुए कहते हैं ,जो लाक्षा गृह में जलते हैं वो ही शूरमा निकलते हैं . आज पूरे देश में यही स्थिति है. कोरोना का यह दूसरा दौर भी पूरे देश की अग्नि परीक्षा है और सभी जन इस लाक्षा गृह से निकलने की जुगत में लगा है। प्रधान मंत्री मोदी के नेतृत्व में देश कोरोना के महाभारत में उतर चुका है. कथा यह है कि दुर्योधन के कपटपूर्ण लाक्षागृह से पांडवों एवं कुंती को बचाने के लिए विदुर अपने एक विश्वस्त व्यक्ति को सुरंग खोदने के लिए भेजते हैं। एक दिन जब वह व्यक्ति सुरंग खोद रहा था तब भीम आते हैं और उससे पूछते हैं, भाई, क्या मैं आपकी कोई सहायता कर सकता हूं, तब उस व्यक्ति ने जवाब दिया, क्या आप युद्ध में स्वयं बैठकर मुझे अपनी गदा चलाने देंगे? नहीं न, ठीक उसी तरह यह सुरंग की खुदाई बड़े ही कौशल का काम है अगर एक भी कुदाल गलत लग गया तो पूरा सुरंग तहस-नहस हो जाएगा। भीम समझ जाते हैं, जो जिस कार्य में निपुण है वह उस कार्य को ज्यादा अच्छे से कर सकता है, उसे हमारे सुझाव या सहायता की कोई आवश्यकता नहीं है।
इस घटना को याद दिलाने के पीछे उद्देश्य यही है कि आज कल कुछ नौसिखिए मोदी जी की कार्यकुशलता की आलोचना कर रहे हैं, जो व्यक्ति 15 सालों से एक राज्य का मुख्यमंत्री रह चुका है और पिछले 6 साल से देश का प्रधानमंत्री है, जो कांग्रेस एवं उसकी खरीदी हुई बिकाऊ मीडिया के 2002 के चक्रव्यूह से साफ सुथरा निकलकर देश को धारा 370 की चक्रव्यूह से निकाल चुका है उसको राजनीति के बारे में ज्ञान देना या उसकी आलोचना करना हास्यास्पद है।
GDP, Sensex, Economy, Petrol Diesel की कीमत जैसी चीजें आए दिन ऊपर नीचे होती रहेंगी, ये एक आम बात है। महत्वपूर्ण ये है कि अब लाखों करोड़ों रुपए के घोटाले नहीं होते, देश के सेना के पास गोला-बारूद एवं फाइटर प्लेन की किल्लत नहीं होती, आपको ये नहीं कहा जाता कि किसी लावारिस वस्तु को न छूएं यह बम हो सकती है, सिमी आतंकवादियों या पाकिस्तानी आतंकवादियों का डर नहीं दिखाया जाता, पाकिस्तान के दस-दस ग्राम के परमाणु हथियार का डर नहीं दिखाया जाता, देश को आयात पर निर्भर नहीं किया जाता और ऐसे ही न जाने कितने ही महत्वपूर्ण परिवर्तन/बातें हैं जो एक व्यक्ति के सशक्त नेतृत्व में देश देख रहा है। संयोजित तरीके से मोदी और अमित शाह की बंगाल रैलियों पर एक नैरेटिव फैलाया जा रहा है कि वर्तमान कोरोना विस्फोट के लिये ये राजनीतिक रैलियां जिम्मेदार है:
आश्चर्य है कि रैलियां बंगाल मे हो रही है और सबसे ज्यादा संक्रमण मौते महाराष्ट्र दिल्ली ,उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, छतीसगढ़, में हो रही है, निश्चित ही रैलियां का आयोजन वर्तमान काल में उचित नहीं है और इसे बंद भी कर दिया गया है। मोदी और अमित शाह बंगाल एक दूसरे कश्मीर में तब्दील न हो जाय, हमारे सेवेन सिस्टर राज्य अलग नही हो जाय,बंगाली हिन्दू एक बार फिर कश्मीरी पण्डितों की तरह शरणार्थी न बन जाय, इसलिये जी तोड़ जान की परवाह किये बिना दोनों कड़ी मेहनत कर रहे हैं क्योंकि बंगाल का भविष्य यही चुनाव तय करने वाला है सम्भवत: यह अंतिम अवसर है बंगाल के लिये।
स्वास्थ्य सेवा राज्य का विषय है गैर भाजपा शासित राज्य की सरकारें स्वास्थ्य सेवा पर ध्यान न देकर हफ्ता वसूली , विज्ञापनों पर ज्यादा ध्यान दे रही है और अपनी विफलताओं का ठिकरा मोदी जी के सर पर फोड़ रही है। एक घटना को लेकर तुरंत किसी निष्कर्ष पर पहुंच कर देश के नेतृत्व पर अविश्वास या उसकी निष्ठा पर सवालिया निशान लगा कर हम देशद्रोहियों एवं भ्रष्टाचारियों के षड़यंत्रकारी लाक्षागृह में जलकर अपना ही नुकसान कर बैठेंगे।
धैर्य एवं विश्वास रखें, जिस पर भरोसा कर हमने पूर्ण बहुमत से अपना नेता चुना है वो हमारे विश्वास पर खरा उतरा है और आगे भी खरा उतरेगा। विपक्ष के,इको सिस्टम को लेकर अधीर न हों, उसे अपना काम करने दें वो अपने कार्य को हमसे बेहतर समझता है।
अश्विनीकुमार मिश्र