घर में झाड़ू मारिए , लीजे बरतन माँज।
साथ किचिन में दीजिए, सुबह, दुपहरी, साँझ।।
सुबह, दुपहरी, साँझ , काम में हाथ बंटाओ।
हल्की-फुल्की बातें , कर के हँसो – हँसाओ।।
रात हुए गिन लो , कितने तारे अम्बर में ।
जैसे भी हो मिलकर , खुश रहिए निज घर में।।
☆अशोक वशिष्ठ