शेखर गुप्ता हमारा छोटा सा मित्र राष्ट्र इजरायल महामारी से उबर चुका है और वहां संक्रमण के मामले 97 प्रतिशत कम हो चुके हैं। भारी भरकम चीन हमारा मित्र नहीं है और उसने न केवल कोविड से पूरी तरह उबरने की घोषणा की है बल्कि हालिया तिमाही में 18.3 फीसदी की वृद्धि भी दर्ज की है। अब जरा भारत पर नजर डालिए। उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बढ़ते कोविड मामलों और मौतों के बीच ऑक्सीजन की कमी को लेकर उच्चस्तरीय बैठक की अध्यक्षता की। |
उन्होंने किसी समारोह या चुनाव प्रचार में समय नहीं बरबाद किया। वह फ्रांस के विदेश मंत्री के साथ मुलाकात पहले ही रद्द कर चुके थे। आमतौर पर वह ऐसा नहीं करते। खासतौर पर यह देखते हुए कि फ्रांस हमारे सामरिक हितों के लिए महत्त्वपूर्ण है और प्रधानमंत्री इस वर्ष के अंत में फ्रांसीसी राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों के साथ बैठक करने वाले हैं। मैं एक बात को रेखांकित करना चाहूंगा कि 1.38 अरब की आबादी वाला परमाणु क्षमता संपन्न देश जो वैश्विक शक्ति बनना चाहता है वह अस्पतालों के लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति की समीक्षा कर रहा है। हर बार की तरह कहा जा सकता है कि यह अत्यधिक केंद्रीकृत सरकार है जिसे केवल प्रधानमंत्री चलाते हैं। लेकिन यह निचले स्तर पर बदइंतजामी की कहानी कहता है। राष्ट्रीय नेतृत्व की स्थिति ऐसी है कि चार दशकों के सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री को ऑक्सीजन की कमी के मामले को व्यक्तिगत रूप से देखना पड़ रहा है। मानो चीन के साथ जंग छिड़ी हो और हमारी सेनाओं के पास मिसाइलों की कमी पड़ गई हो।
मैं सरकार पर लंबे समय से नजर रखता रहा हूं। मेरे लिए दिलचस्पी की बात यह थी कि इस्पात उद्योग के प्रतिनिधि भी इस बैठक में शामिल थे। कुछ फोन कॉल से इसका रहस्य खुला। इस्पात मंत्रालय और उद्योग इसलिए शामिल थे क्योंकि और अधिक गैस सिलिंडर की जरूरत है। इसके बाद कुछ अच्छे निर्णय लिए गए जिनमें ऑक्सीजन का नि:शुल्क अंतरराज्यीय आवागमन शामिल है।
मुकेश अंबानी ने कहा कि वह अपने संयंत्रों से कुछ ऑक्सीजन देंगे। इस बीच इंडिया टुडे चैनल पर एंकर चीख-चीख कर रहा था कि अब आप एमेजॉन तथा अन्य जगहों से घरेलू इस्तेमाल के लिए ऑक्सीजन खरीद सकते हैं। एक देश जो टीके की एकध्रुवीय दुनिया की इकलौती महाशक्ति कहलाने में गर्व कर रहा था, जिसे ब्राजील के राष्ट्रपति बोलसोनारो ने दुनिया को संजीवनी पहुंचाने वाला आधुनिक हनुमान कहा था, वह अब अस्पतालों में ऑक्सीजन को लेकर जूझ रहा है। साथ ही वह दुनिया भर में कोविड टीके के खरीदार भी तलाश रहा है।
यह नरेंद्र मोदी का सबसे बड़ा संकट है। यह बाहरी या आंतरिक सुरक्षा को खतरे से भी बड़ी चुनौती है और सन 2020 की आर्थिक मंदी से भी बड़ी। सुरक्षा को खतरे तो भारत को किसी भी सरकार के पीछे एकजुट कर देते हैं और आर्थिक नुकसानों के बारे में पहले से अनुमान था।
कोविड की यह लहर पिछली लहर से दोगुनी घातक है और हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। यह मोदी सरकार की खामियों को उजागर करने की क्षमता रखती है लेकिन लगता नहीं कि मोदी के इर्दगिर्द मौजूद लोगों में से कोई उन्हें इस बारे में बताएगा। शक्तिशाली लोग अपने आसपास उन लोगों को नहीं रखते जो उन्हें बुरी खबर दे पाएं। यदि किसी में इतना साहस होता तो उसने 2015 में ओबामा की यात्रा के समय ही उनसे कह दिया होता ‘महोदय आप यह सूट मत पहनिए यह उचित नहीं है।’ या फिर पिछले दिनों उनसे यह कह देता कि ‘महोदय कृपया अहमदाबाद के स्टेडियम का नाम अपने नाम पर न रखने दें।’ आलोचक वह सच्चाई उजागर करते हैं जो चापलूस नहीं कर पाते। भक्त कबीर का वह दोहा याद कीजिए जो आरएसएस की बौद्धिक परंपरा में मोदी ने सुना होगा, ‘निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय/बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय’। यानी अपने आलोचकों को पास रखें और उनकी बात सुनें क्योंकि वही आपको आपकी खामियां बता सकते हैं।
लेकिन किसी न किसी को आईना दिखाना होगा, इसीलिए हम यहां हैं। पूरा विश्व जिस देश से टीके पाने की आकांक्षा रख रहा था उसे आपात परिस्थिति में टीके आयात करने पड़ रहे हैं। यह मौका जो गर्व का प्रतीक बना सकता था, वह शर्म का विषय बन चुका है और भारतीय टीका निर्माता भारत को कोविशील्ड निर्माण का लाइसेंस और तकनीक देने वाले देश ब्रिटेन के साथ भी अनुबंध पालन नहीं कर पा रहे। ब्रिटेन ने तो टीका निर्माता को संविदा भंग का नोटिस भी दिया है और लाइसेंस वापस लेने की धमकी भी दी है। हालांकि लगता नहीं कि इस मोड़ पर ऐसा कुछ होगा। परंतु कुछ दिन बाद होने वाली बोरिस जॉनसन की यात्रा को देखते हुए यह सब दूरदर्शी नहीं कहा जा सकता।
यदि हम हकीकत को स्वीकार कर लें तो हम यह समझ सकते हैं कि हम इस स्थिति तक कैसे पहुंचे। इससे भी अहम, हम यह पता कर पाएंगे कि इन हालात से कैसे निपटना है? सन 2014 की गर्मियों में जब नरेंद्र मोदी पहली बार दिल्ली आए तो वह कहा करते थे कि उनके लिए सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि केंद्र सरकार खांचों में बंटकर काम करती थी और लोग कभी बड़े लक्ष्य के लिए एकजुट नहीं रहते थे। उन्होंने कहा कि वह इसे चुनौती देंगे। उन्होंने कहा कि वह पुरानी व्यवस्था बदलेंगे लेकिन सात साल बाद सबकुछ वैसा ही है।
सितंबर के मध्य में उच्चतम स्तर पर पहुंचने के बाद देश में कोविड संक्रमण के मामले कम होने लगे जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, ब्राजील और रूस लगातार दूसरी लहर से जूझ रहे थे। इस बीच हमने जीत का जश्न मनाना शुरू कर दिया। यहां ‘हम’ कौन हैं यह एक अच्छा सवाल है। आज सरकार पर सवाल उठाने पर कहा जा सकता है कि जनता को बदनाम किया जा रहा है।
यह सही है कि लोगों के मन से डर समाप्त हो गया। उन्होंने मास्क का इस्तेमाल और आपस में दूरी बरतना बंद कर दिया तथा दोबारा पार्टी करना शुरू कर दिया और शादियों में धूमधाम होने लगी। लेकिन हमारे नेता क्या संकेत दे रहे थे? कुंभ का आयोजन हुआ और चुनाव प्रचार का काम जोरों से शुरू हो गया। वायरस से जंग जीती जा चुकी थी। लोग नेताओं का अनुसरण करते हैं। नेता जितना लोकप्रिय होगा, उसके अनुयायी उतने ही वफादार होंगे।
अब जब तमाम जरूरी चीजों की कमी सामने है, अस्पतालों से लेकर दवाखानों और श्मशान तक लंबी कतारें लगी हैं, जब टीवी चैनल हमें बता रहे हैं कि ऑक्सीजन सिलिंडर कहां से खरीदें, तो आप समझ सकते हैं कि किसकी गलती की कीमत चुका रहे हैं? हमारे पास बहुत कुछ है लेकिन हम कभी खुद को दोष नहीं देते, हमेशा सरकार पर दोषारोपण करते हैं।
सरकार से चूक हुई है। भारत सरकार पूरी जिम्मेदारी उठा लेती है। उसे लगता है कि वह अकेले सबकुछ कर लेगी। यही कारण है कि सरकार बताएगी कि कौन से टीके को इजाजत दी जाएगी, उसे कौन बनाएगा, कितने लोग उसे किस कीमत पर बेचेंगे? जाहिर है सरकार ही उसकी इकलौती खरीदार होगी। यह पहला मौका नहीं है जब सरकार ने बाजार का सहयोग लेने के बजाय उसे अलग-थलग किया है। आश्चर्य की बात यह है कि यह सब मोदी सरकार के कार्यकाल में हुआ जबकि उसका वादा एकदम उलट था।
यहां से रास्ता एकदम सीधा है क्योंकि एक ही रास्ता है। ज्यादा से ज्यादा टीकाकरण किया जाए। भारत जैसी बड़ी आबादी और बढ़ते संक्रमण वाले देश में रोजाना 30 लाख टीकाकरण बहुत कम है।
गत वर्ष इस समय तक सुर्खियों की तलाश में रहने वालों ने कोविड की पहली लहर से ही भारी नुकसान की बात कह दी थी। भारत ने उन्हें गलत साबित किया और वे खामोशी से अपने घावों और आहत अहम पर मरहम लगा रहे हैं। अब अगर उनकी बात सही साबित होती है तो यह उनकी जीत होगी।