देश का संभवत: सबसे बड़ा प्रवासी संकट 2020 की पहली छमाही में देखा गया जब लॉकडाउन लगाए जाने के बाद उत्तर प्रदेश में अनुमानत: 40 लाख कामगार वापस लौटे थे। अब महाराष्ट्र, पंजाब और दिल्ली सहित प्रमुख औद्योगिक राज्यों में महामारी की दूसरी लहर का असर व्यापक तौर पर देखने को मिल रहा है, ऐसे में इस बार भी वैसे ही हालात बनते नजर आ रहे हैं।
महाराष्ट्र में काम करने वाले उत्तर प्रदेश, बिहार और अन्य उत्तरी राज्यों के प्रवासी मजदूर लॉकडाउन लगाए जाने की आशंका और आजीविका के नुकसान के डर से भी लौटने लगे हैं। हालांकि उनकी संख्या अभी कम है। साल 2020 के बाद के महीनों में काम पर लौटने वाले इन श्रमिकों की दोबारा वापसी से इस महीने के अंत में होने वाला राज्य पंचायत चुनाव दिलचस्प रहने की उम्मीद है।
उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव को दुनिया का सबसे बड़ा स्थानीय निकायों का चुनाव माना जाता है और इस पंचायत चुनाव के लिए 15, 19, 26 और 29 अप्रैल को राज्य के 75 जिलों में चार चरणों में मतदान होंगे। इन चुनावों के लिए 2 मई को मतगणना होगी। पहले चरण के चुनाव के लिए नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। हालांकि प्रवासी कामगारों के उनके गांवों में वापसी से मतदान प्रतिशत में वृद्धि हो सकती है। लेकिन इसने इन चुनावों में एक और आयाम जोड़ा है जिसमें सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने इस बार पार्टी प्रतीकों के साथ उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे हैं।
उत्तर प्रदेश के प्रवासी कामगारों के गृह राज्यों और जिन राज्यों में रोजगार मिलता है वहां सत्तारूढ़ दलों द्वारा किए गए कामों, रोजगार गंवाने, लॉकडाउन प्रबंधन, आर्थिक तंगी, कोविड-19 की वजह से होने वाली मौतों और स्वास्थ्य आपात स्थितियों में दी जाने वाली मदद या चूक, राहत और सामाजिक सुरक्षा उपाय भी इन चुनाव नतीजों को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रवासी कामगारों को आजीविका, भोजन देने के साथ ही उनके पुनर्वास के लिए एक व्यापक कदम उठाने का दावा किया है। महामारी की दूसरी लहर को देखते हुए फिर से प्रवासी कामगारों की वापसी होगी ऐसे में स्वास्थ्य देखभाल के लिए भी मदद की जरूरत होगी और उन्हें चुनावों के लिए भी उत्साहित करना होगा।
हालांकि, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को पिछले चार वर्षों में अपने ‘उत्कृष्ट’ प्रदर्शन के आधार पर बेहतर प्रदर्शन करने का भरोसा है और देश के कुछ हिस्से में चल रहे किसानों के विरोध प्रदर्शन के बावजूद सरकार द्वारा शुरू की गई ग्रामीण कल्याण योजनाओं के आधार पर अच्छा करने और ग्रामीण जनता का विश्वास हासिल करने का भरोसा है।
भाजपा के प्रदेश सचिव चंद्र मोहन ने 2020 की तरह प्रवासी कामगारों की वापसी से चुनौतियां बढऩे और चुनावों पर इसका असर पडऩे की संभावना को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, ‘हमारी सरकार ने पिछले साल लॉकडाउन के बाद अनुमानत: 40 लाख प्रवासी कामगारों को राहत प्रदान करने के लिए समय पर कई व्यापक उपाय किए थे। लोगों ने इन वर्षों के दौरान हमारी नीतियों और कार्यक्रमों का समर्थन किया है।’
बिज़नेस स्टैंडर्ड से बात करते हुए बस्ती जिला के कृषि कार्यकर्ता अरविंद सिंह कहते हैं कि अन्य राज्यों खासकर महाराष्ट्र के प्रवासी कामगारों की वापसी में लगातार वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा, ‘श्रमिक जिन राज्यों में काम कर रहे हैं उनमें यह डर है अगर पिछले साल की तरह लॉकडाउन लगता है तो वे यहीं फंस जाएंगे। इसी वजह से वे अपने गांवों में किसी भी तरह से लौटने की कोशिश कर रहे हैं, खासतौर पर ट्रेन के जरिये।’
उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र, पंजाब और दिल्ली में गैर-भाजपा दलों की सरकारें हैं जबकि उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है। ऐसे में यह पूर्वानुमान लगाना जल्दबाजी होगी कि प्रवासी कामगार किस तरह मतदान करेंगे। हालांकि, उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले साल प्रवासी संकट से निपटने के लिए हरसंभव कदम उठाए थे और ग्रामीण जनता भी उनसे काफी हद तक संतुष्ट थी। हालांकि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने इस मुद्दे पर सरकार की आलोचना की।
बसपा नेता हरिकृष्ण गौतम ने कहा, ‘उत्तर प्रदेश सरकार, पिछले साल लॉकडाउन के बाद दूसरे राज्यों से कामगारों के वापस आने पर समय पर उचित व्यवस्था करने में विफल रही है। गरीबों को सैकड़ों किलोमीटर तक भूखे भी चलना पड़ा। हम लोग ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं और हमने पाया है कि सत्तारूढ़ दल के साथ स्पष्ट तौर पर मोहभंग हुआ है।’
सामाजिक इतिहासकार और राजनीतिक विश्लेषक बदरीनारायण ने कहा कि कामगारों के आने से चुनाव से पहले राजनीतिक सरगर्मी जरूर बढ़ जाएगी और मतदान प्रतिशत भी बढ़ेगा। उन्होंने कहा, ‘हालांकि, मुझे मतदान के रुझान पर कोई खास असर पडऩे की उम्मीद नहीं है।’ उत्तर प्रदेश में 826 प्रखंड और 58,194 ग्राम सभाएं हैं।