रामायण में जितने भी चरित्रों का उल्लेख है, उन सभी की भूमिका अपने आप में महत्वपूर्ण है। राजा दशरथ सहित तीनों माताएं, गुरु वशिष्ठ, निषादराज गुह, राजा जनक, विभीषण, अंगद इत्यादि जितने व्यक्तित्व राम कथा से जुड़े हैं, सभी अपनी-अपनी भूमिका में महत्वपूर्ण लगते हैं। इन्हीं में से एक हैं सुग्रीव। किष्किन्धा के राजा, प्रभु राम के मित्र। रावण द्वारा सीता-हरण के बाद उनकी तलाश के दौरान ऋष्यमूक पर्वत पर प्रभु राम की सुग्रीव से भेंट होती है। यहीं राम को सुग्रीव पर उसके भाई बाली द्वारा किए गये अत्याचार का पता लगता है। भगवान राम सुग्रीव को अपना मित्र मान कर उन्हें बाली के त्रास से मुक्त करवाने का वचन देते हैं और उन्हें किष्किन्धा का राजा घोषित करते हैं।
माना जाता है कि रामायण में जिस ऋष्यमूक पर्वत का उल्लेख है, वह कर्नाटक प्रदेश के हम्पी में है। हम्पी कभी प्रसिद्ध विजयनगर साम्राज्य की राजधानी था। यहीं पर वानरराज सुग्रीव और बाली की राजधानी किष्किन्धा नगरी बसी थी। हम्पी और आसपास के क्षेत्र में आज भी रामायण के विभिन्न प्रसंगों से जुड़े कई स्थल यहां रामजी के आगमन के साक्षी हैं। यहां स्थित ऋष्यमूक पर्वत पर आज भी वो गुफा विद्यमान है, जहां वानरराज सुग्रीव अपने मंत्रियों सहित रहते थे। रामायण में वर्णित प्रसंग के अनुसार बाली से विवाद के कारण जब सुग्रीव को राजमहल छोड़ कर वनों में भागना पड़ा, तब वो अपने सहयोगियों सहित इस स्थान पर आये। कथा है कि इस ऋष्यमूक पर्वत पर ऋषि मातंग का आश्रम था। ऋषि मातंग ने एक समय अपने आश्रम को अपवित्र करने के कारण बाली को शाप दिया था। उस शाप के अनुसार बाली जैसे ही इस क्षेत्र में प्रवेश करेगा, उसकी मृत्यु हो जाएगी। यही कारण था कि सुग्रीव के लिए छिपने के दृष्टिकोण से यह स्थान सबसे उपयुक्त था।
सुग्रीव जिस गुफा में रहे, वहां आज उनका एक विग्रह स्थापित है, जिसकी पूजा की जाती है। तुंगभद्रा नदी के तट पर बसा यह क्षेत्र बहुत ही मनोरम है। यहां आज भी ऐसा प्रतीत होता है, जैसे रामायण के कालखंड में आ गए हों। यहां के भौगोलिक परिदृश्य में आज भी अधिक परिवर्तन नहीं आया है।