Home समसमायिकीप्रसंगवश खाकी और खादी की जंग का अंत क्या होगा ?—कर्ण हिंदुस्तानी

खाकी और खादी की जंग का अंत क्या होगा ?—कर्ण हिंदुस्तानी

by zadmin

खाकी और खादी की जंग का अंत क्या होगा ?

कर्ण हिंदुस्तानी

मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमवीर सिंह ने महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख पर जो आर्थिक  आरोप लगाए हैं वह चिंताजनक हैं। सरकारें बनतीं हैं और सरकारें बदनाम भी होतीं हैं लेकिन इस तरह का आरोप अपने आप में पहली बार लगा है। खाकी और खादी की यह जंग किसी भी राज्य की सरकार के लिए उचित नहीं है।  परमवीर सिंह के  जाएं तो कुछ तथ्य सामने आते हैं जो यह  इशारा करते हैं कि अब तक आर्थिक लेनदेन बड़ी ही ईमानदारी से होता आया था।  मगर अब खुलकर सामने आ गया है।  आप आम ज़िंदगी की बात करें तो एक शराब बिक्री की दूकान का प्रमाणपत्र हासिल करने के लिए करोड़ों रुपयों को गिना जाता है।  यदि शराब बेचने का प्रमाणपत्र हासिल करना होता है बिना किसी दलाल के यह मिलता ही नहीं है। करोड़ों रुपयों में एक प्रमाणपत्र मिलता है। आखिर सरकारें शराब बिक्री के लिए प्रमाणपत्र जारी करने की प्रक्रिया को सार्वजनिक क्यों नहीं करती ? देश में बैठे धनपशु ही शराब बिक्री का प्रमाणपत्र हासिल करते हैं। यह शराब बिक्री का प्रमाणपत्र फिलहाल महाराष्ट्र में बंद है।  फिर भी  शराब बिक्री के प्रमाणपत्र एक जिले से दूसरे जिले में स्थलांतरित कर शराब की दुकाने खोली जा रही हैं। अगर हम सिर्फ ठाणे जिले के कल्याण डोम्बिवली की ही बात करें तो कल्याण शील रोड पर नेतिवली से लेकर कल्याण फाटा तक कुल सात शराब बिक्री की दुकानें हैं और यह सभी हाल ही में खुली हैं।  इन  दुकानों को  प्रमाणपत्र कहाँ  से मिला।  अथवा यह प्रमाणपत्र कहाँ से स्थलांतरित किया गया ? कोई नहीं जानता। कहीं एक ही प्रमाणपत्र के सहारे अन्य दुकाने तो नहीं चल रहीं हैं ? करोड़ों की लागत से हासिल किया जाने वाला शराब बिक्री का प्रमाणपत्र खादी और खाकी के लिए आर्थिक स्त्रोत का बड़ा साधन बन जाता है।  अकेले मुंबई में सैंकड़ों शराब बिक्री की दुकानें हैं।  इसके अलावा बार और रेस्त्रां के नाम पर पुलिस रिकॉर्ड में १७५० होटल मौजूद हैं।  इन सभी से भी जमकर आर्थिक वसूली की जाती है।  नियम  कहता है कि रेस्त्रां में आप शराब नहीं परोस सकते। इसलिए हर बार में दो हिस्से बनाए जातें हैं।  मगर दोनों हिस्सों में नियमों को ताक पर रखकर शराब परोसी जाती है। इसी वजह से यहां से करोड़ों रुपया हफ्ता वसूल किया जाता है। इसके अलावा मुंबई की रातों की जान कहे जाने वाले नृत्यालय अलग से खाकी और खादी को नज़राना देते हैं। कुल मिलाकर शराब माफिया सरकारों को अड़चन में डालते रहते हैं।  इसके पहले जब आर आर पाटिल महाराष्ट्र के गृहमंत्री थे तब नृत्यालय वाले मयखानों को लेकर मुंबई पुलिस सहित राज्य के गृहराज्य मंत्री पर आर्थिक लेनदेन के आरोप लगाए गए थे। तब आर आर पाटिल ने नृत्यालय वाले मयखानों को बंद करने का आदेश दिया था।  इस आदेश के खिलाफ बार मालिकों का ललनाओं के साथ आज़ाद मैदान में धरना प्रदर्शन भी किया गया। मामला अदालत में भी गया और नतीजा आज कुछ शर्तों के साथ नृत्यालय चल रहे हैं। अब फिर हम उस मुद्दे पर आएं जो इस वक़्त महाराष्ट्र की राजनीती को हिला कर रखा हुआ है।  खाकी और खादी की जंग का अंत क्या होगा ? जब तक देश में अथवा राज्यों में शराब से मिलने वाले राजस्व से सरकारें चलतीं रहेंगी तब तक इस तरह की जंग पर रोक लग पाना असम्भव है। परमवीर सिंह हो या अनिल देशमुख कोई भी दूध का धुला नहीं है। इस लिए यह जंग भविष्य में भी होती रहेगी क्योंकि हराम की कमाई से ही लोकतंत्र की कथित दुनिया चल रही है।

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