खरी-खरी
खादी के संग पुलिस का , चला आ रहा मेल।
दोनों मिलकर खेलते , एक अनोखा खेल ।।
एक अनोखा खेल , पुलिस नित करे उगाही।
शासन और प्रशासन , करते हैं मनचाही।।
लोकतंत्र में नित्य , तंत्र की है बर्बादी।
गलबहियाँ डाले , चलते खाकी और खादी।।
अशोक वशिष्ठ