कोरोना काल में केंद्र सरकार ने किसान से लेकर व्यापारी तक की मदद की है। किसानों को छूट या कृषि यंत्र और फसलों के लिए बीज दिये। हर सैक्टर के लिए भारी-भरकम पैकेज दिये गए। छोटे दुकानदारों को काम शुरू करने के लिए दस-दस हजार का ऋण दिया गया। कोरोना महामारी से निपटने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं पर बेतहासा खर्च हुआ। लोगों को ईएमआई भरने के लिए कुछ माह की छूट दी गई। बैंकों का एनपीए पहले से ही काफी ज्यादा है। आने वाले दिनों में बैंकों के पास अपना घाटा पाटने के लिए कोई जादू की छड़ी नहीं है। सरकार अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए प्रयास कर रही है। उसने एक मंच भी तैयार किया है। यह मंच कम ब्याज पर पूंजी उपलब्ध कराएगा। सरकारी प्रयास तो किये जा रहे हैं लेकिन बैंकिंग व्यवस्था को मजबूत बनाना एक बड़ी चुनौती है।
सरकारी बैंकों को शिक्षा ऋण में बड़ा नुकसान हुआ है। एजुकेशन लोन में जितना कर्ज दिया गया है, उसका 9.95 फीसदी पैसा एनपीए हो गया है। यानी यह पैसा डूब गया। बैंकों को वापस नहीं मिला है। इसकी कुल रकम 8587 करोड़ रुपए रही है। एनपीए वह रकम होती है जो बैंकों को वापस नहीं मिलती है। सरकार ने संसद के बजट सत्र में यह जानकारी दी है। 31 दिसंबर 2020 तक कुल एजुकेशन लोन में 3 लाख 66 हजार 260 खाते ऐसे रहे हैं जिन्होंने लोन का पैसा बैंकों को नहीं चुकाया है। पैसा न चुकाने की मुख्य वजह यह है कि कोरोना में एक तो लोगों के रोजगार छिन गए और दूसरी ओर इनकम भी घट गई। देश में बैंकों ने 2019 तक एजुकेशन सेक्टर को 66902 करोड़ रुपए का लोन दिया था। हालांकि 2017 सितंबर में यह 71975 करोड़ रुपए था। दरअसल एजुकेशन लोन में अगर 4 लाख रुपए तक का लोन है तो बैंक इसके लिए कोई भी गारंटी या कोलैटरल की मांग नहीं करता है। 4 से 7.5 लाख रुपए तक के लोन पर पर्सनल गारंटी मांगी जाती है। हालांकि बैंक चाहें तो यह सब मोल भाव कर कम ज्यादा कर भी सकते हैं। आंकड़े बताते हैं कि 2018-19 में एजुकेशन लोन में एनपीए 8.29 फीसदी था। जबकि 2017-18 में यह 8.11 फीसदी था। 2019-20 में यह 7.61 फीसदी था। यानी पिछले तीन सालों में 2020-21 में एजुकेशन लोन में एनपीए काफी बढ़ गया है। तीनों सालों में इस साल सबसे ज्यादा एनपीए रहा है।
मुख्य कैटिगरी में एजुकेशन लोन एनपीए के मामले में सबसे टॉप पर रहा है। हाउसिंग सेक्टर से लेकर कंज्यूमर ड्यूरेबल और रिटेल लोन का एनपीए 1.52 फीसदी से लेकर 6.91 फीसदी रहा है। जबकि एकुजेशन में यह करीबन 10 फीसदी के आस-पास रहा है।कुल शिक्षा ऋण में दक्षिण भारत का हिस्सा सबसे ज्यादा है। इसका हिस्सा इस एनपीए में 65 फीसदी है। कुल एजुकेशन लोन 8587 करोड़ रुपए था, जिसमें तमिलनाडू का 3490.75 करोड़ रुपए रहा है। कुल आउटस्टैंडिंग लोन में तमिलनाडु का हिस्सा 20.3 फीसदी रहा है जबकि बिहार में 25.67 फीसदी हिस्सा रहा है। बता दें कि केंद्र सरकार ने इस तरह के लोन के लिए मोरोटोरियम भी लागू किया था जो 2020 में सितंबर तक लागू था। हालांकि रोजगार छिनने की वजह से यह मोरोटोरियम भी एजुकेशन लोन के लिए कोई मदद बैंकों की नहीं कर पाया। इनकम घटने और रोजगार की मुश्किल होने के कारण लोगों ने लोन चुकाने के फैसले को पीछे रख दिया। काफी सारे छात्रों ने कोर्सेस से ड्रॉप आउट भी कर लिया।
एक और तथ्य सामने आया है कि नर्सिंग और इंजीनियरिंग छात्र एमबीए और मैडिकल छात्रों के मुकाबले ज्यादा डिफाल्टर हैं। इसके कई फैक्टर्स हैं। इसका अर्थ यही है कि देश में इंजीनियरिंग छात्रों में बेरोजगारी बढ़ी है, यही हाल नर्सिंग छात्रों का है। इंजीनियरिंग छात्रों के बेरोजगारी विस्फोटक रूप ले चुकी है। दरअसल 70-80 के दशक में भारत में साक्षरता बहुत कम थी। मुट्ठीभर लोग ही तकनीकी अध्ययन और डिग्री ले पाते थे। देश में इस समय तकनीकी और उच्च शिक्षा सबसे बुरे दौर में है। देश में हर साल लगभग 8 लाख छात्र इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट होते हैं परन्तु उनमें सिर्फ 40 फीसदी को ही नौकरी मिलती है। देश में अलग-अलग टैक्निकल इंस्टीट्यूट से इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट हो चुके छात्रों में 60 फीसदी बेरोजगार हैं। तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता की नींव 2010 में ही कमजोर होने लगी थी और देशभर में इंजीनियरिंग सहित तकनीकी कोर्सों में लाखों सीटें खाली रहने लगी थी, जिसका आंकड़ा साल दर साल बढ़ता गया लेकिन इतने संवेदनशील मुद्दे पर कुछ खास नहीं किया गया। देशभर में 95 फीसदी युवा निजी विश्वविद्यालयों और संस्थानों से शिक्षा लेकर निकलते हैं और सीधी बात है कि अगर इन 95 प्रतिशत छात्रों पर कोई संकट होगा तो वे पूरे देश की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ सामाजिक स्थिति को भी नुक्सान पहुंचायेगा। सिर्फ 5 प्रतिशत सरकारी संस्थानों की बदौलत विकसित भारत का सपना साकार नहीं होगा।अभी तो मार्च समाप्त होते-होते इस वित्त वर्ष में इस लोन के एनपीए और बढऩे की आशंका है।
अशोक भाटिया
स्वतंत्र पत्रकार