कोविड-19 की दूसरी लहर के चलते इस साल होली का रंग फीका पड़ सकता है। पिछले साल होली के वक्त तक हालात इतने खराब नहीं थे फिर भी होली मिलन समारोहों पर असर पड़ा था। इस साल मार्च में कोरोना ने जैसी रफ्तार पकड़ी है, उसे देखते हुए होली का त्योहार भी पाबंदियों के बीच मनाना पड़ सकता है। महाराष्ट्र से तो सबसे ज्यादा केस सामने आ रहे हैं, सोमवार को कम से कम 10 और राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों का कोविड ग्राफ ऊपर चढ़ गया। हालात ऐसे हो चले हैं कि कई राज्यों में लॉकडाउन जैसी स्थिति लौटती दिख रही है। संक्रमण बढ़ने के साथ-साथ खोले गए स्कूल-कॉलेजों को भी बंद करने पर विचार हो रहा है।
रंगों के त्योहार में अब दो हफ्ते से कम का वक्त रह गया है और कोरोना है कि बढ़ता ही जा रहा है। यही हाल रहा तो प्रशासन को रंग खेलने को लेकर अलग से गाइडलाइंस जारी करनी पड़ सकती है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, तमिलनाडु, हरियाणा जैसे राज्यों में केसेज बढ़ते चले जा रहे हैं। कुछ हिस्सों में लॉकडाउन लगाया जा चुका है, कहीं सख्ती बढ़ाई गई है। स्थिति नहीं सुधरी तो पाबंदियां और जगह भी लगाई जा सकती हैं।पिछले साल होली के वक्त कोविड का प्रकोप इतना नहीं था, फिर भी एहतियात बरतते हुए होली-मिलन समारोह रद्द कर दिए गए थे। इस वक्त तो कोरोना की सेकेंड वेव चल रही है, ऐसे में होली मिलन समारोहों पर रोक लगभग तय समझिए। बिहार सरकार ने तो इसका ऐलान भी कर दिया है। महाराष्ट्र के कई जिलों में पहले से लॉकडाउन है। मध्य प्रदेश और कर्नाटक की सरकारें लॉकडाउन का इशारा कर रही हैं।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, पिछले 24 घंटों में देशभर से कुल 35871नए मामलों का पता चला है। इस दौरान 1721मरीजों की मौत हो गई। मंगलवार को मरीज 17741कोरोना से उबरने में कामयाब रहे और डिस्चार्ज कर दिए गए। देश में कोविड के टोटल मामलों की संख्या अब 11474605हो चुकी है जिनमें से 252364केस ऐक्टिव हैं। अबतक इस महामारी ने 159216लोगों की जान ली है।कोविड केसेज बढ़ते देख स्कूलों को बंद करने की अटकलें शुरू हो चुकी हैं। बिहार में सरकारी और प्राइवेट स्कूलों को बंद करने पर विचार चल रहा है। मंगलवार को इस बारे में फैसला होगा। ऐसी चर्चा है कि राज्य में 22 मार्च से स्कूल बंद किए जा सकते हैं। महरााष्ट्र के कई हिस्सों में पहले से ही 31 मार्च तक स्कूल बंद हैं।
दरअसल लोगों में कोरोना के प्रति गंभीरता कम हुई है। बाजारों में हालात कोरोना से पहले की तरह हो गए हैं तो शादी-विवाह व जलसों का सिलसिला निकल पड़ा है। इस दौरान कई राज्यों में स्थानीय निकायों के चुनावों सहित राजनीतिक गतिविधियां भी तेज हुई हैं। बंगाल, आसाम, केरल सहित कई प्रदेशों में विधानसभा चुनाव की भेरी बज चुकी है और इन प्रदेशों में राजनीतिक रैलियां हो रही हैं। इसके साथ ही किसान आंदोलन के चलते धरना प्रदर्शन और राज्यों की विधानसभाओं के बजट सत्र के चलते विधानसभाओं पर प्रदर्शन का सिलसिला जारी है। सार्वजनिक वाहनों ही क्या एक तरह से कोरोना प्रोटोकाल की पालना लगभग नहीं के बराबर होने लगी है। हाथ धोने, सेनेटाइजर का प्रयोग, दो गज की दूरी, मास्क लगाने आदि में अब औपचारिकता मात्र रह जाने से स्थितियां गंभीर होने की चेतावनी साफ हो गई है। यहां तक कि लोग वैक्सीनेशन को भी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।
कोरोना की वापसी के संकेत डरावने हो गए हैं। बड़ी मुश्किल से पटरी पर लौटती दिनचर्या पर कोरोना की मार भारी पड़ने वाली है। सरकार की भी अपनी सीमाएं हैं। कोरोना के कारण प्रभावित आर्थिक गतिविधियों को लॉकडाउन के माध्यम से बंद करना अब सरकारों के लिए किसी दुश्वारी से कम नहीं है। आखिर रोजगार व आर्थिक गतिविधियों को बनाए रखना चुनौती भरा है। डिमाण्ड और सप्लाई की चैन जैसे तैसे कुछ सुधरी है पर नए हालातों से यह प्रभावित होनी ही है। ऐसे में सरकार से ज्यादा जिम्मेदारी अब आम नागरिकों की हो जाती है। कोरोना का वैक्सीनेशन का काम पूरा नहीं हो जाता है तब तक के लिए सार्वजनिक आयोजनों के लिए तो सरकार को अनुमति देने पर सख्त पाबंदी ही लगा देनी चाहिए। लगभग सभी राज्यों में कोरोना प्रोटोकाल की पालना के लिए निर्देश जारी हैं। केन्द्र सरकार भी समय-समय पर निर्देश जारी कर रही है। ऐसे में राज्य सरकारों को कोरोना प्रोटोकाल की पालना में सख्ती करनी ही होगी। बिना मास्क के आवाजाही या काम-धाम पर सख्त कदम उठाने होंगे। प्रशासन को ऐसे लोगों के साथ सख्ती से पेश होना होगा। सोशल डिस्टेंस की पालना पर ध्यान दिलाना होगा। सार्वजनिक परिवहन के साधनों और सार्वजनिक स्थानों आदि पर सख्ती से पालना करानी होगी।
सरकारों व आमजन को यह समझना होगा कि कोरोना के चलते लॉकडाउन ही केवल मात्र विकल्प नहीं हो सकता। आखिर लॉकडाउन के हालात आए ही क्यों, लोगों को स्वयं को भी जिम्मेदार होना होगा। सामाजिक दायित्व निभाने के लिए आगे आना होगा। नाम कमाने के लिए छुटभैया नेताओं की गतिविधियों पर रोक लगानी होगी। यदि कोरोना प्रोटोकाल की पालना घर से ही शुरू की जाए और समझाइस से लोगों को प्रेरित किया जाए तभी समाधान संभव है। नहीं तो कोरोना के नाम पर मुफ्त सामग्री के वितरण और फोटो खिंचाकर सोशल मीडिया पर डालने से कोई हल नहीं निकल सकता। हमें नहीं भूलना चाहिए कि आर्थिक गतिविधियां ठप्प होने से कितने युवा बेरोजगार हुए हैं तो कितनों के वेतन में कटौती हुई है। बेरोजगारी के चलते या आय के स्रोत प्रभावित होने से कितने ही लोगों ने जीवन लीला समाप्त की है तो कितनों के ही हालात प्रभावित हुए हैं। ऐसे में सरकार से अधिक अब आम आदमी और सामाजिक व गैर-सरकारी संगठनों का दायित्व अधिक हो जाता है। सरकार को भी ऐसा रास्ता निकालना होगा जिससे गतिविधियां ठप्प नहीं हों क्योंकि इसका दंश अर्थव्यवस्था भुगत चुकी है। ऐसे में नो मास्क नो एन्ट्री के स्लोगन लगाने की नहीं इसकी सख्ती से पालना की आवश्यकता हो जाती है। नहीं तो आने वाला कोरोना का दौर और भी अधिक भयावह होगा यह हमें नहीं भूलना चाहिए। यदि आपको इस वर्ष होली के रंग को बदरंग नहीं करना है तो पहले कोरोना की संपूर्ण लड़ाई लड़नी हैं ।
अशोक भाटिया
स्वतंत्र पत्रकार , लेखक . स्तंभकार